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________________ ( 70 ) 2. उपाध्याय शान्तिचन्द्र जो सम्वत् 1642 (सन् 1585) का चातुर्मास पूर्ण होते ही आचार्य हीर विजयसूरि गुजरात की ओर बिहार कर गये लेकिन बादशाह के आग्रह पर अपने विद्वान शिष्य शान्तिचन्द्र जी को नवपल्लवित पौधे की रक्षा के लिए नहीं छोः गये। शांतिचन्द्र जी जगदगुरू के विरह से खिन्न प्राणियों को अपने उपदेशामृत द्वारा सान्तवना देने लगे। और बादशाह से भी विद्वदगोष्ठी करने लगे । एक किंवदन्ती है कि एक समय अकबर बादशाह और उपाध्याय शांतिचन्द्र जी परस्पर विनोद की बातें कर रहे थे उस वक्त अकबर ने कहा कि महाराज.। कुछ चमत्कार तो दिखलाओं उत्तर में उपाध्याय जी ने कहा कि चमत्कार देखता चाहते हैं ,तो मेरे साथ आपके बगीचे में घलिये । तुरन्त ही अकबर और उपाध्याय बगीचे में गये वहां पर उपाध्याय जी ने अकबर को उसके पिता हुमायू आदि सात दाद-प्रदादाओं के दर्शन करवाये । अकबर बड़े आश्चर्य में पड़ गया और उसके हृदय में जैन धर्म के प्रति अटल श्रद्धा हो गई। निःसन्देह शांन्तिचन्द्र जी बड़े भारी विद्वान और एक साथ एक सौ आर अवधान करने की अद्भुत शक्तिः धारण करने वाले अप्रतिम प्रतिभावान थे सूरिजी के बिहार के बाद शान्तिचन्द्र जी निरन्तर बादशाह के पास जाने लगे और विविध प्रकार का सदपदेश देने लगे। बादशाह उनकी विद्यवता से बड़ खुश हुआ और उन पर अनुरक्त होता गया । बादशाह के सौहार्द एवं औदार्य प्रसन्न होकर शान्तिचन्द्र जी ने अकबर की प्रशंसा में "कृपारस कोष" की रचन की। बादशाह ने जो दया के कार्य किये थे । इस कोष में उन्हीं का वर्णन है य काव्य वे बादशाह को सुनाते थे । अकबर इस "कृपारस कोष" का श्रवण द्वार पान कर बहुत तप्त हुआ इस ग्रन्थ के अन्त के 126-27 के पद्यों में स्पो लिखा है-"बादशाह ने जो जजिया कर माफ किया, उद्धत मुगलों से ज मन्दिरों का छुटकारा हुआ, कैद में पड़े हुए कैदी जो बन्धन रहित हुए, साधार राजगण भी मुनियों का जो सत्कार करने लगा, साल भर में छः महीने तक जीवों को अभयदान मिला और विशेष कर गायें, भैसे, बैल और पांडे आ जो पशु कसाई की प्राणनाशक छुरि से निर्भय हुए" इत्यादि शासन की उम्र 1. जगदगरू हीर-मुमुक्षुभवयानन्द-जी पृष्ठ 92 पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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