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________________ ( 69 ) इस हिसाब से भी अकबर द्वारा हजीरे बनवाने का ऋषभदास का कथन सत्य प्रतीत होता है। इस तरह शिकार करके अनेक जीवों को मारने वाले बाद. शाह ने सूरिजी के वचनामृत से पाप कार्य करने छोड़ दिये । इतना ही नहीं, बादशाह ने चित्तौड़ की लड़ाई में जो घोर नरसंहार किया उसका पश्चाताप करते हुए कहा कि "मैंने ऐसे पाप किये हैं ऐसे आज तक किसी से नहीं किये होंगे जब मैंने चित्तौड़गढ़ जीत लिया उस समय राणा के मनुष्य, हाथी, घोड़े मारे थे इतना ही नहीं चित्तौड़ के एक कुत्ते को भी नहीं छोड़ा था। ऐसे पाप से मैंने बहुत से किल्ले जीते हैं लेकिन अब मैं भविष्य में इस तरह के दुष्काय न करने की प्रतिज्ञा करता हूं। सूरिजी ने जो उद्देश्य लेकर गन्धार से बिहार किया था, उसमें उन्हें पूर्ण सफलता मिली अतः अब उन्होंने बिहार करने का निश्चय किया वैसे भी साधुओं को ज्यादा समय तक एक स्थान पर नहीं रहना चाहिए क्योंकि एक कवि ने बहता पानी, निर्मला बन्धा सो गन्दा होय । साधू तो रमता भला, धाग न लागे कोय । हीरविजय सूरिरास में ऋषभदास ने भी लिखा है स्त्री पीहर, नरसासरे, संयमियां थिरवास । ऐ प्रणये अलखामणा, जो मन्डे घिरवास ।' अतः सूरिजी ने बादशाह के सामने बिहार करने की इच्छा प्रकट की बादTह ने धर्मोपदेश के लिए सूरिजी को और समय देने का आग्रह किया लेकिन रिजी के दृढ़ निश्चय के सामने बादशाह को उन्हें गुजरात की ओर बिहार करने अनुमति देनी ही पड़ी। बादशाह ने सूरिजी से अन्तिम अर्ज किया कि समयमय पर मेरे योग्य सेवा कार्य फरमाते रहें और आप जैसे गुरूदेव का भी फर्ज कि मेरे जैसे अद्यम सेवक को न भूलें। आचार्य हीरविजयसूरिजी अपने कार्यों द्वारा भारतीय इतिहास में अमर हैं। का जीवन स्फिटिक जैसा उज्जवल और उनका त्याग, तप, अखण्ड ब्रह्मचर्य, डित्य सूर्य की किरणों जैसा जाज्वल्यमान हैं उन्होंने अकबर को ही नहीं अपितु रात, काठियाबाड़ तथा राजस्थान के अन्य राजाओं को भी ओजस्वी वाणी रा बहुत प्रभावित किया। 1. हीरविजय सूरिरास -- पण्डित ऋषभदास पृष्ठ 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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