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________________ ( 68 ) "जेजियाकाख्यो गोर्जर कर विशेष:"I अर्थात् गुजरात का विशेष कर जजिया ।। ___ इससे यह सिद्ध होता है कि सूरिजी के उपदेश से बादशाह ने जजिया बन्द करने का जो फरमान दिया, वह गुजरात के लिए था। जैन एतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में भी शत्रुन्जय व गिरनार में "जजिया" तीर्थयात्री कर बन्द करने का उल्लेख है। जब गुजरात के पवित्र बड़े-बड़े तीर्थ स्थानों की रक्षा के लिए सरिजी ने बादशाह से अनुनय किया तो इस बारे में जगद्गुरू हीर के लेखक लिखते हैं कि "इस प्रकार जगद्गुरू के दयामय वचन सुनकर तुरन्त ही बादशाह ने अपने फरमान में गुजरात के शत्रुन्जय, पावापुरी, गिरनार, सम्मेतशिखर और केसरियाजी आदि जो जैन सम्प्रदाय के पवित्र तीर्थ हैं उनमें से किसी तीर्थ पर कोई भी मनुष्य अपनी दखल गिरी न करे और कोई जानबूझकर किसी जानवर की भी हिंसा न करे । ये सब तीर्थ स्थान जगद्गुरू श्रीमद्विजय हीरसूरिजी महाराज को सौंपे गये हैं। ऐसा फरमान अकबर ने लिखकर सूरिजी के कर कमलों में सादर सविनय समर्पण कर दिया इस तरह सूरिजी के उपदेश स बादशाह ने अपने व जगत के कल्याणार्थ अनेक कार्य किये । बादशाह जो पांच पांच सौ चिड़ियों की जीमें नित्य प्रति खाता था । सरिजी के उपदेश से मांसाहार से नफरत करने लगा । मेड़ता के रास्ते पर बादशाह ने जो हजीरे बनवाये थे, हरेक हजीरे पर हरिणों के पांच-पांच सौ सींग लगवाये थे स्वयं बादशाह के शब्दों में"-- "देखे हजीरे हमारे तुम्ह, एक सौ चऊद कीए वे हम्म । अकेके सिंग पंच से पंच पातिग करता नहीं खलखंच ॥ बदायूनी ने भी लिखा हैं "प्रतिवर्ष बादशाह अपनी अत्यन्त भक्ति के कारण उस नमर (अजमेर) जाता था और इसीलिए उसने आगरे और अजमेर के बीच में स्थान-स्थान पर जहां-जहां मुकाम होते थे महल और एक-एक कोस की दूरी पर एक कुआ और एक स्तम्भ (हजीरा) बनवाया था PanauraswoNHAAR mammeena 1. हीरसौभाग्य काव्य-पण्डित देवविमलगणि सगं 14, श्लोक 271 2. जैन एतिहासिक गुर्जर काव्य संचय-श्री जैनात्मानन्द सभा भावनगर पृष्ठ 201 3. जगद्गुरू हीर मुमुक्षु भव्यानन्द जी पृष्ठ 89 4. हीरविजय सूरिरास पण्डित ऋषभदास पृष्ठ 131 5. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लों द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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