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________________ ( ८३ ) पाठ पूज्यपाद के मूल ग्रन्थ से संग्रहीत हैं। प्रस्तुत ग्रंथ श्री पूज्यपाद की कृति नहीं है । अतः यह अभी तक अज्ञात है कि इस ग्रन्थ का रचयिता या संग्रहकर्ता कौन है ? ____ इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जैनाचार्यों द्वारा लिखित आयुर्वेद के ग्रंथों की संख्या प्रचुर है, किंतु उन ग्रंथों की भी वही स्थिति हैं जो जेनाचार्यो द्वारा लिखित ज्योतिष के ग्रंथों को है, जैन समाज ने तथा अन्यान्य जैन संस्थाओं ने जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत धर्म-दर्शन-न्यायसाहित्य-काव्य-अलंकार आदि के ग्रंथों के प्रकाशन की तो व्यवस्था की है, उसमें रुचि दिखलाई और उसके लिए पर्याप्त राशि भी व्यय की है, किंतु आयुर्वेद और ज्योतिष के ग्रंथों के प्रति कोई लक्ष्य नहीं दिया । यही कारण है कि इस साहित्य की प्रचुरता होते हुए भी यह सम्पूर्ण साहित्य अभी तक अंधकारावत है। अब तो स्थिति यहाँ तक हो गई कि जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत जिन ग्रंथों की रचना का पता चलता है उन ग्रंथों का अस्तित्व ही हमारे सामने नहीं है । अनेक स्थानों पर स्वामो समन्तभद्र के वैद्यक ग्रंथ का उल्लेख मिलता है, किंतु वह ग्रंथ अभी तक अप्राप्य है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ योगरत्नाकर में श्री पूज्यपाद के नाम से अनेक योग उद्धृत हैं तथा 'श्री पूज्यपादोदितं' आदि कथनों का उद्धरण देते हुए अनेक अजैन विद्वान् वैद्यकी से अपना योगक्षेम चलाते हुए देखे गए हैं। किंतु अत्यधिक प्रयत्न किए जाने पर भी श्री पूज्यपाद द्वारा विरचित ग्रंथ प्राप्त नहीं हो सका । इसी प्रकार और भी अनेक ग्रन्थों का प्रकरणांतर से उल्लेख तो मिलता है, किंतु ढूँढने पर उसकी उपलब्धि नहीं होती। जैनाचार्यो के आयुर्वेद सम्बंधी ग्रंथों में जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला नामक ग्रंथ सम्भवतः सबसे अधिक प्राचीन है, योगचितामणि, वैद्यमनोत्सव मेघविनोद, रामविनोद, गंगयतिनिदान आदि ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं, ये ग्रंथ श्वेतांबर आचार्यों द्वारा विरचित हैं । गत शताब्दी के प्रसिद्ध चिकित्सक जैन यति रामलाल जी का भी एक बड़ा ग्रंथ प्रकाशित हुआ है इस प्रकार ये कुछ ही ग्रंथ अभी प्रकाशित हुए हैं, इसके विपरीत अप्रकाशित जैन वैद्यक ग्रंथों की संख्या अधिक है । मुझे श्री अगरचंद जी नाहटा से जैनाचार्यो द्वारा लिखित आयुर्वेद संबंधी ग्रंथों की जानकारी प्राप्त हुई है जो निम्न प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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