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________________ ( ६ ) ये सात प्रकार बताए हैं, २२ तो बुद्ध ने विकथा के स्थान पर निरुध्धन शब्द का प्रयोग किया है। उसके राजकथा, चोरकथा, महामात्यकथा, सेना कथा, भयकथा, युद्धकथा, अन्नकथा, पानकथा, वस्त्रकथा, शयनकथा, मालाकथा, गंधकथा, ज्ञातिकथा, यानकथा, गामकथा, निगमकथा, नगरकथा, जनपदकथा, स्त्रीकथा आदि अनेक भेद किये हैं । २३ स्थानांग में राग और द्वेष पाप कर्म का बंध बताया है २४ तो अंगुत्तरनिकाय में तीन प्रकार से कर्मसमुदाय माना है लोभज, दोषज ( द्वेषज ), मोहज १२५ उन सभी में मोह को अधिक दोषजनक माना है । स्थानांग व समवायांग में आठ मद के स्थान बताये हैं- जातिमद कुलमद; बलमद रूपमद, तपमद, श्रुतमद, लाभ और ऐश्वर्य मद । १७ तो अंगुत्तरनिकाय में मद के तीन प्रकार बताये हैं- यौवन, आरोग्य, जीवित मद । इन तीनों मदों से मानव दुराचारी बनता है । २८ ९ स्थानांग, समवयांग में आस्रव के निरोध को संवर कहा और उसके भेद-प्रभेदों की चर्चा की है ; तथागत बुद्ध ने अंगुत्तरनिकाय में कहा आस्रव का निरोध मात्र संवर से ही नहीं होता । उन्होंने इस प्रकार उसका विभाग किया - (१) सँवर से ( इन्द्रियाँ मुक्त होती हैं तो इन्द्रियों का सँवर करने से गुप्तेन्द्रियाँ होने से तद्जन्य आस्रव नहीं होता । ) (२) प्रतिसेवना से (३) अधिवासना से ( ४ ) परिवर्जन से (५) विनोद से (७) भावना ३० से - इस सभी में अविद्या निरोध को ही मुख्य आस्रव निरोध " माना है | 30 स्थानांग आदि में अरिहन्तं, सिद्ध, साधु, धर्मं इन चार शरण आदि का उल्लेख है, तो बुद्ध परम्परा में बुद्ध, धर्म और संघ ये तीन शरण को महत्त्व दिया गया है । स्थानांग में जैन उपासक के लिए पाँच अणुव्रतों का विधान है तो अंगुत्तरनिकाय में बौद्ध उपासक के लिए पाँच शील का उल्लेख है - ( १ ) प्राणातिपातविरमण, (२) दत्तादानविरमण, (३) काम भोग- मिथ्याचार से विरमण, (४) मृषावादविरमण, (५) सुरा, मैरेय मद्य प्रमाद स्थान से विरमण 33 1 ३२ स्थानांग में ३४ प्रश्न के छह प्रकार बताये हैं- संशय प्रश्न, , मिथ्यान्निवेश प्रश्न, अनुयोगी प्रश्न, अनुलोम प्रश्न, जानकर किया गया प्रश्न, न जानने से किया गया प्रश्न । अंगुत्तरनिकाय में प्रश्न के सम्बन्ध में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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