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निम्तन करते हुए बुद्ध ने बताया कि कितने प्रश्न ऐसे होते हैं कि जिसके एक अंश का उत्तर देना चाहिए; कितने ही प्रश्न ऐसे हैं जो प्रश्नकर्ता से प्रतिप्रश्न कर उत्तर देना चाहिए, कितने ही प्रश्न ऐसे हैं जिनका विभाग कर उत्तर देना चाहिए । ३५
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स्थानांगसूत्र में छः लेश्याओं का वर्णन है और इन लेश्याओं के भव्य और अभव्य की दृष्टि से संयोगी आदि भंग प्रतिपादित किये गये हैं। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में पूरण कश्यप द्वारा छः अभिजातियों का उल्लेख किया गया है जो रंगों के आधार पर निश्चित की गई है; वह इस प्रकार है (१) कृष्णाभिजाति -बकरी, सुअर, पक्षी और पशुपक्षी पर अपनी आजीविका चलाने वाले मानव कृष्णाभिजाति हैं । (२) नीलाभिजाति - कंटक वृत्ति भिक्षुक नीलाभिजाति हैं । बौद्ध भिक्षु तथा अन्य कर्मवाले भिक्षुओं का समूह । (३) लोहिताभिजाति - एक शटक निर्ग्रन्थों का समूह । ( ४ ) हरिद्राभिजाति - श्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्र | (५) शुक्राभिजाति - आजीवक श्रमण श्रमणियों का समूह । (६) परम शुक्लाभिजाति - आजीवक आचार्य नन्द, वत्स, कुश सांकृत्य मस्करी, गोशालक आदि का समूह ।
आनन्द ने गौतमबुद्ध से इन छः अभिजातियों के सम्बन्ध में पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं भी छह अभिजातियों की प्रज्ञापना करता हूँ ।
( १ ) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक ( नीच कुल में उत्पन्न ) होकर कृष्ण कर्म तथा पापकर्म करता है ।
(२) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक होकर धर्म करता है ।
(३) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो, अकृष्ण, अशुक्ल निर्वाण को पैदा करता है ।
(४) कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक ( ऊंचे कुल में उत्पन्न हो ) शुक्ल धर्म करता है ।
(५) कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो, कृष्ण धर्म करता है । (६) कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो, अकृष्ण- अशुक्ल निर्वाण को पैदा करता है । ३७
महाभारत " में प्राणियों के वर्ण छः प्रकार के बताये हैं । सनत्कुमार दानवेन्द्र वृत्तासुर से कहा - प्राणियों के वर्णं छह होते हैं - कृष्ण, धूम्र नील, रक्त, हारिद्र और शुक्ल । इनमें से कृष्ण धूम्र नील वर्ण का
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