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________________ ( ७३ ) अपने रचित ग्रन्थों का उल्लेख करते हुए कवि ने इस मेघदूत का भी नाम लिया है तथा । काव्यं श्री मेघदूताऽख्यं षड्दर्शन-समुच्चयः, वृत्तिबलावबोधाख्या धातुपारायणं एवमादि महाग्रन्थ निर्माण परायणाः, चतुराणां चिरं चेतश्चमत्काराय येऽन्वहम् || नेमिनाथ और राजीमती ( राजुल ) के ही प्रसंग को लेकर आचार्य ने इस दूत-काव्य को रचा है पर इसमें कवि ने दूसरे दूत-काव्यों के समान मेघदूत को समस्या पूर्ति का आश्रय नहीं लिया है । मात्र नामसाम्य ही है । रचना, शैली, विभाग आदि में यह दूत-काव्य पूर्ण स्वतन्त्र है । इस दूत-काव्य में चार सर्ग हैं तथा प्रत्येक सर्ग में क्रमश: ५०, ४९, ५५ एवं ४२ पद्य हैं । इस प्रकार कुल १९६ पद्यों से यह दूत-काव्य सजासँवरा है | नेमकुमार ( २२वें तीर्थंकर ) पशुओं का करुण क्रन्दन सुनकर वैवाहिक वेश-भूषा का परित्याग कर मार्ग से ही रैवतक ( गिरनार ) पर्वत पर मुनि बनकर तपस्या के लिए चले जाते हैं । राजीमती जिसके साथ उनका विवाह हो रहा था, उक्त समाचार सुनकर मूच्छित हो जाती है । सखियों द्वारा उपचार किये जाने पर उसे होश आता है । होश आने पर राजुल ने अपने सामने आकाश में उपस्थित मेत्र को, अपने विरक्त पति का परिचय देकर प्रियतम को शान्त करने, रिझाने के लिए दूत के रूप में चुना और अपनी दुःखित अवस्था वर्णन कर अपने प्राणनाथ को भेजनेवाला सन्देश सुनाया । इस सन्देश को सुन सखियाँ राजीमती को समझाती हैं कि नेमिकुमार मनुष्यभव को सफल बनाने के लिए वीतरागी हुए हैं । कहाँ तो मेघ, कहाँ तुम्हारा सन्देह और कहाँ उनकी वीतरागी प्रवृत्ति ? इन सबका तनिक भी सम्बन्ध नहीं है । अन्त में राजीमती शोक को त्याग नेमिकुमार के पास जाकर साध्वी बन जाती है । कालिदास के मेघदूत के अनुकरण पर लिखे जाने पर भी यह काव्य कालिदास के मेघदूत से सर्वथा भिन्न ही है । जैन परम्परा में उपलब्ध अन्य दूत काव्यों की भांति इसमें समस्या पूर्ति नहीं की गई है। पर हाँ ! छन्द अवश्य मन्दाक्रान्ता अपनाया गया है। काव्य की नायिका राजीमती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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