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________________ ( ६६ ) (आ) दान, शील, तप, भावना, नैतिक उपदेश आदि की प्रधानता लेकर चलनेवाली रचनाएँ स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध नहीं हैं । यथावसर उन्होंने कथावस्तु में सुन्दर उपदेश गुम्फित किया है यथा पाणी तणइ वियोगि कादम जिम फाटइ हीउँ । तिम जइ माणस होइ साचा नेह पतीजइ । जे सूरा जे पडिया ते गरुआ गुणधीर । नारी तेवि नचाविआ जे नर बावनबीर । - चंदनबालाच उपई मृगलां बहु पेषतां सीह पडी मृग लेइ । मरण सीह तिम जीवनइ अणची तिउँ दुख देइ । आप सवारथ वल्लहउँ नवि वल्लहुँ पर सुमिनंतर सोहामणउँ भइ परि पामिउँ - अभयकुमार श्रेणिक रास भारतीय आदर्श नारी का प्रणय किसी एक को समर्पित होता है । उसके मन में पति आकाश के समान है । चन्द्र, तारा, जलधर आदि को आश्रय देनेवाले आकाश की भाँति पतिरूप आकाश के आश्रय में पल्लवित होना उसे अधिक पसन्द है --- मइ परिणि तू केहउ लाभ जेवहउ माथा ऊपरि आम । आभ आधारि चंद जसू आभ आधारि जलहर पूर । आभ आधारि तारा वसइ आभ प्रमाणि कोई नवि भवइ । -- अभयकुमार श्रेणिक रास यदि 'कन्या विक्रय करइ जि कोइ, रोम संख तस हत्या होइ' कहकर समाज में नारी का स्थान निर्देश किया तो दूसरी ओर नारी प्रतिष्ठा भी निरूपित की गई है । विवाह से विमुख भावड सुललित के सामने स्त्री की निंदा करते हुए पुरुष की सर्वोपरिता सिद्ध करता है, तो सुललित स्त्री की सर्वोपरिता सिद्ध करके उसे मौन कर देती है ―― - जंबुस्वामीच उपई कज्ज । अज्ज || जनम लगइ स्त्री करइ उपगार आप वडई राषीउ मरारि । वासुदेव जिण चक्का हिवइ स्त्री कूंषई ऊपन्ना सवइ । जे जग जंपई स्त्री चरित्र तेता सरसति ग्रंथ पवित्र । जे नर मरई ते सुणि आचार छंडइ हाराहार सिणगार । नारि सरिसउ नर नवि मरइ नवि आभरण अंगि ऊतरइ Jain Education International For Private & Personal Use Only -जावड भावड रास www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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