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________________ सुललित का प्रतिवाद इतना सबल है कि उसका प्रत्युत्तर आज भी देना असम्भव है। ___'संसार समद्र अपारो' आधि व्याधि उपाधि से पूर्ण है। तीव्र प्रलोभन सहित आत्मा अपनी यात्रा का प्रारंभ करती है। लेकिन माहि मगर पंचवीस तण उ भक्त, योवनि वेलुस वाजइ । ज्वरा तणइ आह लिइ तुहउ तन तृष्णा गणि गाजइ। --कायाबेडी स्वाध्याय यौवन के वेणुनाद के पश्चात् जरावस्था चुपचाप आ जाती है, तब 'उढण्णु' रूप जीव खिन्न हो जाता है । 'शकरो' रूप कुटुम्ब इस कोतुक को सविनोद निस्सहाय देखा करता है जिससे क्रोधरू अग्नि में वह जलता रहता है और विश्वानर रूप जीव विषयादि से काँप उठता है। जरावस्था का सुन्दर चित्रण दर्शनीय है नीमा धोवह उढण रोवइ शकरो बिठो कोतिग जोवइ । आगि बलि अंगीठो तापइ विश्वानर बइठो तादि कंपइ॥ -हरियाली स्तवक इसलिए इस काया रूप नौका का मुख्य स्तंभ दृढ़ होना चाहिए। शील तथा सुकृत से सढ को सजाना होगा। पंचेन्द्रिय रूप पाँच पाटियों से निर्मित इस नौका की प्रशंसा या अप्रशंसा क्यों को जाय ? आंतरिक नाविक ही 'निरञ्जन स्थान पर पहुँचाने में असमर्थ है बेडली पाँच जि पाहियाँ बंधति साढ़ी कोडि । बेलां पंच पलासीया म वाणिसि म वषोडि । बंभ षंभ दृढ चाहोइ जालवणी परवाण। सोल सुकृत सिढ छांहडी विनउ विवेक सुंथाण । इक मालिम इस नाहउ एक राउ अंतरि राउ। तिह नायक नित निउ छणां निपुण निरंजन ठाउ।-बेडली गीत किन्तु सद्गुरु हो नौका पार कर सकते हैं सुहगुरु समरथ सुखदातार सुहगुरु बरु दुख फेडणहार । सुहगुरु दुरगति उधरइ मुगतिपंथ नई पुहता करई। कल्पसूत्र तथा नमस्कार मंत्र का माहात्म्य क्रमशः कल्पसूत्र भास और नउकार भास में निरूपित है। __ (इ) कथानुयोग पर आधारित रचनाएँ-जिनके कथातत्व और लौकिक दो प्रभेद होते हैं। (१) ऐतिहासिक कथातत्त्व के अन्तर्गत तीर्थकर, महामुनि, विवाहवर्णन, चक्रवर्ती राजा, तीर्थोद्धारक श्रावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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