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________________ चउपई लभद्द काक, थूलमद्द भास, धन्ना शालिभद्द भास, कल्पसूत्र भास, नउकार भास, गौतमस्वामी भास, आर्द्रकुमार विवाएलु (अपूर्ण), नेमिनाथ विवाहलो, आदि । इनके अतिरिक्त गीत, स्तवन आदि यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं, यथा-थावच्चासुत गीत, वेडली गीत, पालीयताणा गीत, खरतरवसही गीत, थुलभद्र गीत, काया बेडी स्वाध्याय, शत्रुजय गिरिवर फूल.डां, समरा सारंग कडखो, शाश्वत् जिन स्तवन, स्नात्रविधि, हरियाली स्तवक आदि। देपाल के साहित्य के परिशीलन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि विभिन्न काव्य प्रकार के निर्माता का प्रमुख उद्देश्य धर्म प्रचार था। जैन धर्म में मूलतः चार अनुयोग हैं; यथा, कथानुयोग, द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग और गणितानुयोग । देपाल साहित्य में इन चारों अनुयोगों का न्यूनःधिक वर्णन यत्र-तत्र उपलब्ध होता है। कथानुयोग के अन्तर्गत ऐतिहासिक और कल्पित कथा पद्धति प्राप्त होती है। अतः अधिक सुविधा के लिए निम्नलिखित विभाजन उचित होगा। (अ) गणितानुयोग पर आधारित रचनाएँ जिनमें स्थान विक्षेप का भौगोलिक वर्णन प्राप्त होता है। 'जीरापल्लि पार्श्वनाथ रास में सिरोही स्थित जैन तीर्थ का वर्णन है। मालव, मारवाड़, सिंध, सोरठ आदि की श्राविकाएं तीर्थयात्रा में सम्मिलित होती हैं। प्रत्येक अपनेअपने प्रदेश की विशेषताओं का वर्णन करती हैं। अंत में नागोर की श्राविका उनके पारस्परिक विवाद को समाप्त करके सबको प्रभपूजा में लीन कर देती है। नाट्यात्मक शैली इस कृति की प्रधान विशेषता है। शत्रुञ्जय तीर्थयात्रा से प्रभावित होकर उन्होंने पालीयताणा का सुन्दर वर्णन किया है पालीयताणऊँ विमल ताल जूनउगढ गिरनारि । ललत सरोवर विमल गिर ऊजिल सोवनरेष । वारुद वाडीय विमलगिरे ऊजिल सवि वनराय। विमलगिरि निर्मलजल ऊजिलि गणपति गंग । -शत्रुजय गिरिवर फूलडां 'थंभि थंभि तिहाँ पूतलीय हसंत रमंत खेलंती दीसइ । -खरतर वसही गीत ५. संपा० श्री अगरचन्द नाहटा, मभारती, वर्ष २, अंक ३, पृ० ५१.५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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