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________________ ( ६४ ) अन्यत्र उन्हें 'ठाकुर' संबोधन किया है। वस्तुतः 'ठाकुर' भोजक जाति का अद्यावधि सम्मानीय विरुद् है । श्री देपाल, वर्तमान भोजक ज्ञाति के आद्यगुरु माने जाते हैं । गुजरात के सीमान्त प्रदेश में स्थित 'थराद' भोजकों का आदिस्थान माना जाता है । किसी समय यहाँ के जैन अत्यंत ऊधम मचानेवाले थे । कोई भी जैनाचार्य चातुर्मास व्यतीत करने के लिए थराद को पसन्द नहीं करते थे । देपाल ने प्रतिबोध देने के हेतु हिम्मतपूर्वक इसी स्थान को चुना। ग्राम प्रवेश से पूर्व एक चादर में ईंटें बाँध लीं। उपाश्रय में जाकर बड़े पिटारे में बंद कर दीं। प्रतिदिन धार्मिक प्रवचन में प्रायः गपशप करते रहे और उन पुस्तकों के सम्बन्ध में मौन रहे, जो पिटारे में बंद थीं। जैनों की जिज्ञासा को चातुर्मास की अवधि तक बढ़ाये रखा । अन्ततः रहस्योद्घाटन करते हुए कहा 'आप लोगों के लिए ये रोड़े ही तो ज्ञान हैं !' लोगों ने क्षमा-याचना करते हुए धर्म में सुमति का वारा किया | प्रतीत होता है कि देपाल मस्त प्रकार के धर्मोपदेशक थे । उनका स्वाभिमानी फक्कड़ व्यक्तित्व उनके साहित्य में सर्वत्र परिलक्षित होता है । कथा- काव्य में वाक्चातुर्य दर्शनीय है । नाट्यात्मक शैली उनकी मौलिकता है । उनके ५० वर्षं पश्चात् विरचित 'कोचर व्यवहारी रास' में स्थान-स्थान पर 'वाचाल', 'बुद्धिनिधान', 'कविराज' आदि विशेषण प्रयुक्त हैं। उनकी प्राचीनतम कृति 'थूलभद्द फाक' सं. १४७३ में लिपि बद्ध है, अतः सिद्ध है कि इसकी रचना सं. १४७३ पूर्व हुई थी । अहमदा बाद निवासी पंडित अ० मो० भोजक के निजी संग्रह में देपाल के हस्ताक्षर में एक कृति लिपिबद्ध प्राप्त होती है । पंडित सोमचंदकृत 'वृत्तरत्नाकरवृत्ति' संवत १५१८ में 'ठाकुर देवालेन' लिखित है । अत: देपाल के जीवनकाल को १५वीं शती के अन्तिम चरण में मानने में कोई आपत्ति नहीं है उनकी सभी रचनाएँ अन्य लिपिकार द्वारा लिपिबद्ध हुई हैं, अतः उनके जीवनकाल में ही ये कृतियाँ अधिक जनप्रिय रही होंगी । अध्येता ने अहमदाबाद, बड़ौदा, जोधपुर आदि स्थानों में परिभ्रमण करके उनकी २५ कृतियों का पता लगाया है और अनेक कृतियों की प्रतिलिपियाँ की हैं । रचनाएँ - श्री देपाल की विपुल साहित्य सामग्री एकाधिक जैन भंडारों में उपलब्ध है, यथा-जावडभावड रास, अभयकुमार श्रेणिक रास, जीरा पल्लि पार्श्वनाथ रास, भीमसिंह रास, चंदनबाला चउपई, जंबु स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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