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________________ ( ५१ ) नक का उपयोग किया। अन्य ने राम नाम की महत्ता तथा तप को सर्वोच्चता की स्थापना के लिए इसमें आवश्यक संशोधन उपस्थित किए। अस्तू, शम्बूक आख्यान का आलोडन विभिन्न सामाजिक मान्यताओं धार्मिक दृष्टिकोणों तथा सांस्कृतिक दशाओं का निर्देशन प्रस्तुत करता है। संदर्भ १. वाल्मीकि रामायण (बड़ौदा संस्करण), उत्तर० अ० ६५-६७ २. वही ३. रघुवंश, १५-४३-५६ ४. उत्तररामचरित, द्वितीय अंक; तु. पद्मपुराण, सृष्टि खंड, ३३, ६०-१३२ ५. वाल्मीकि रामायण, अयोध्या अ० ५७४९-३९ ६. पउमचरियं, पर्व ४३ ७. पद्मपुराण ( रविषेण कृत ), पर्व ४३ . ८. वही, पर्व ४३।४६-४७ ९. वा० रा०, युद्धकाण्ड, १२८११०४-१०५; रघुवंश ५।१९, १६०६७ १०. 'जैन आगम में भारतीय समाज' जगदीशचन्द्र जैन, वाराणसी, १९६५ पृ० २२३ ११. पद्मपुराण, ११।२०३ न जाति गर्हिता काचिद्गुणाः कल्याणकारकम् । व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ।। १२. आनन्द रामायण ७।१०५०-१२२ १३. बुल्के कामिल, 'राम कथा उत्पत्ति और विकास' प्रयाग, १९७१, पृ० ६१६ १४. वही, पृ० ६१६ १५. मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ, कलकत्ता, १९५९, पृ० ७५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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