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शम्बूक आख्यान 'जैन तथा जैनेतर सामग्री का तुलनात्मक अध्ययन'
श्री विमलचन्द शुक्ल
प्राचीन आख्यानों तथा मिथकों का इतिहास -परक विश्लेषण एवं कथा संयोजन के विविध स्तरों तथा अन्तर्भूति परिवर्तनों की बहुविध व्याख्या, व्यक्ति, सम्प्रदाय एवं काल तथा स्थान विशेष की सांस्कृतिक, धार्मिक तथा समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के अध्ययन हेतु महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन करती है । घटनाओं के यथार्थ लेखन तथा नग्न चित्रण पद्धति से भिन्न भारतीय मनीषियों एवं लेखकों ने आख्यानों के माध्यम से मानव मूल्यों तथा समकालिक समाज आदर्शो को प्रतिष्ठित करने का छद्म प्रयास किया है । तैथिक परिधि से स्वतंत्र तथा सामाजिक एवं नैतिक मानदण्डों की दृष्टि से अनुपेक्षणीय अनेक आख्यान या तो विचारकों एवं मनीषियों के द्वारा स्व- आदर्शो के पोषण हेतु निर्मित कल्पनाएँ हैं, या पुरा प्रचलित प्रसंगों के सोद्देश्य परिवर्तित स्वरूप । शम्बूक आख्यान भी इस प्रकार के अनेक आख्यानों में से एक है जिसका उपयोग ब्राह्मण धर्मावलम्बियों, जैनाचार्यों तथा मध्यकालीन भक्तों के द्वारा विविध प्रकार से किया गया है । प्रस्तुत लेख में शम्बूक आख्यान की शल्यक्रिया के माध्यम से सामाजिक परिवेशों, मान्यताओं तथा मूल्यों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है ।
इस कथानक का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकिकृत रामायण में उपलब्ध होता है । " परवर्त्ती अनेक कवियों ने इसी ग्रन्थ को उपजीव्य स्वीकार कर शम्बूक आख्यान के कलेवर को विस्तृत किया है। वाल्मीकि - रामायण के आधार पर शम्बूक आख्यान को निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है
"राम के शासनकाल में एक ब्राह्मण अपने मृत पुत्र को लेकर उपस्थित हुआ और राम की भर्त्सना करने लगा, क्योंकि पिता के जीवित रहने पर पुत्र की मृत्यु, तत्कालीन शासक के राज्य में अधर्माचरण का
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