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________________ श्रमण भगवान् महावीर ७७ एक सामान्य आत्मा, परमात्म पद की असीम ऊँचाई तक पहुँची। महावीर का अतीत एवं वर्तमान साधक-जीवन इस आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का एक सुन्दर सजीव चित्र है। श्रमण महावीर का जीवन इसी आध्यात्मिक विकासवाद से गुजरता हुआ एकदिन परम विकसित, परम विशुद्ध अर्हत् पद पर प्रतिष्ठित हुआ ! . ई० पू० ५६६ के वैशाख शुक्ला दशमी के दिन की घटना जैन इतिहास में महावीर के कैवल्य-कल्याणक नाम से प्रसिद्ध है। ऋजु बालुका नदी का शांत सुरम्य तट ! श्यामक किसान का खेत और उसमें शाल वृक्ष के नीचे श्रमण महावीर ध्यान-साधना में लीन ! महाश्रमण को तल्लीनता, निर्मलता और भावविशुद्धि अपनी अंतिम बिन्दु पर पहुँच रही थी। वे पूर्ण समाधिस्थ हुए शांत रस में निमग्न हो रहे थे कि बाह्य जगत में सूर्य के ढलते-ढलते, महावीर के अन्तर्जगत में दिव्य ज्ञान का सूर्य अनंत प्रकाश पुंज लिए उदित हो गया। श्रमण महावीर सर्वज्ञ बन गए । साधना के बीहड़ पथ से गुजरती हुई एक आत्मा सिद्धि के द्वार तक पहुँच गई। साधक सिद्ध दशा को प्राप्त हो गया। आत्मा परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई। महाश्रमण महावीर का तीर्थंकर जीवन वस्तुतः धर्म, समाज एवं राजनीति के परिष्कार का काल है। उन्होंने गम्भीर आध्यात्मिक समस्या से लेकर पति-पत्नी के जीवन की सामान्य समस्या तक को स्पर्श किया, साधक-जीवन की उलझनों के साथ ही राजनीतिक जगत की उलझनें और तनावों तक के समाधान की दिशा में उन्होंने मार्ग दर्शन दिया। उनके अंदर एक विराट् सामाजिक चेतना थी, जो समाज के किसी भी अंग को सड़ा-गला नहीं देख सकती थी। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ तीर्थंकर महावीर के जीवन में घटी होंगी जिनका सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व होता, किंतु वे घटनाएं घटना रूप में नहीं, सिर्फ उपदेशरूप में ही हमारे पास आज बची हुई हैं, इसलिए महावीर की सामाजिक व राजनीतिक समत्व दृष्टि का समग्र मूल्यांकन करना होगा। हाँ कुछ छुटपूट प्रसंग और वचन ऐसे जरूर हैं जिनके आधार पर एक प्रतिबिम्ब खड़ा किया जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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