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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
पारिवारिक जीवन : विश्वास एवं प्रेम :
मगध सम्राट् श्रेणिक तोर्थंकर महावीर के अत्यन्त श्रद्धाशील उपासक थे । एकबार किसी भ्रमवश सम्राट् को अपनी महारानी चलना के चरित्र पर संदेह हो गया । दाम्पत्य जीवन में एक-दूसरे के चरित्र पर अविश्वास एवं संदेह सबसे अधिक खतरनाक होता है । सम्राट् को इतना भयंकर क्रोध आया कि महामात्य अभय को आदेश दिया - " चेलना के महलों को तुरन्त जला डालो ।”
सम्राट का मन खिन्नता, ग्लानि एवं क्रोध से कुलबुला रहा था । वे शांति और समाधान पाने के लिए तीर्थंकर महावीर की सभा में पहुँचे । तीर्थंकर ने देखा - सम्राट् आज महान् अकृत्य कर रहा है, एक पतिव्रता साध्वी को कलंकित कर रहा है, केवल एक तुच्छ भ्रम के कारण ! यदि समाधान न मिला तो संभव है सम्राट् का मन नारी जाति के प्रति घृणा का तूफान खड़ा करे और उससे क्या-क्या न अघटित घटित हो जाए !
महाश्रमण ने श्रेणिक की अविश्वासग्रन्थि को झकझोरा" सम्राट् ! तुम जिस महारानी चेलना पर अविश्वास कर रहे हो, वह महान् पतिव्रता है, सती है, तुम्हारा संदेह निर्मूल है ।" और महा श्रमण ने जब संदेह के भ्रान्त कारणों की व्याख्या की तो सम्राट् की आँखें खुल गई । वह पश्चात्ताप से रो पड़ा और तुरन्त राजमहलों की ओर दौड़ा ! एक भयंकर अनर्थ होते-होते बच गया ।
तीर्थंकर महावीर का एक प्रमुख उपासक था - 'महाशतक' ! उसकी पत्नी बड़ी कर्कशा और कठोर स्वभाव की थी । एकबार पत्नी के दुर्व्यवहार से क्षुब्ध होकर महाशतक ने उसकी कठोर भर्त्सना करते हुए कहा - "तेरी बड़ी दुर्दशा होगी, तू मर कर नरक में जाएगी, और भयंकर यातनाएँ सहेगी ।"
धर्मात्मा पति की आक्रोशभरी वाणी को उसने शाप समझा और वह जोर-जोर से सिर पीट कर रोने लगी- “हाय ! मुझे पति ने शाप दे दिया, अब मेरी क्या दुर्दशा होगी ! "
तीर्थंकर महावीर ने पति-पत्नी के कलह को जाना तो त्वरित अपने प्रिय शिष्य गौतम को भेजा - " गौतम, जाओ ! उपासक
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