________________
श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
1
जनक, अश्वपति कैकेय, जैवालिक आदि तत्त्वज्ञानी क्षत्रिय बड़े-बड़े ऋषियों एवं ब्राह्मण कुमारों को भी अध्यात्मविद्या का उपदेश करते रहे थे । पूर्व भारत के क्षत्रिय अपेक्षाकृत उदार, प्रगतिशील एवं आध्यात्मिक विचारों के थे, वे याज्ञिक हिंसा के विरोधी थे । समाज में ब्राह्मण एवं पुरोहित वर्ग का सामाजिक व धार्मिक प्रभुत्व होने के कारण यज्ञ, देवपूजन, पशुबलि, दास व शूद्र से घृणा तथा नारी को धार्मिक व शैक्षणिक क्षेत्र से दूर रखना आदि प्रवृत्तियाँ भी प्रबल थीं। फिर भी यह माना जा सकता है ---तीर्थंकर पार्श्वनाथ की धार्मिक क्रांति के बाद मगध के क्षत्रियों में काफी परिवर्तन आ चुके थे । उनमें एक सामाजिक चेतना के साथ आध्यात्मिक जागरण भी हो रहा था । अनेक क्षत्रिय पार्श्वनाथ की श्रमण परंपरा में दीक्षित हो चुके थे । महाराज चेटक तथा सिद्धार्थ आदि प्रमुख क्षत्रिय पार्श्वनाथ के पक्के अनुयायी - "उवासग" - थे । काशी के क्षत्रिय राजकुमार पार्श्वनाथ की धर्म क्रांति की कहानियाँ अब भी क्षत्रिय माताएँ अपने राजकुमारों को सुनाया करती थीं। माता-पिताओं के निर्मल जीवन एवं वाणी के द्वारा उज्ज्वल संस्कार क्षत्रिय कुमारों में बाल्यकाल से ही उभरने लगते थे । इन्हीं संस्कारों का प्रादुर्भाव राजकुमार वर्धमान में भी दिखलाई पड़ने लगा । और इसी प्रकार के कुछ महान् संस्कार कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम) में अंकुरित होने की चर्चा भी उस समय इधर-उधर फैल चुकी थी । इस प्रकार पूर्व भारत के क्षत्रियों में यज्ञविरोधी आध्यात्मिक जागरण की एक लहर उठ रही थी ।
७०
साहस : जीवन का मूल गुण :
जीवन एक युद्ध है, और उसमें विजयी बनने के लिए साहस एक अमोघ अस्त्र है | दुर्बल और भीरु मानस कभी भी प्रगति के द्वार नहीं छू सकता । जीवन की उन्नति, प्रगति और उच्चतम विकास के लिए साहस मूल आधार है ।
राजकुमार वधमान में बचपन से ही दृढ़ साहस की अद्भुत स्फुरणा जगती हुई प्रतीत होती है । भय की कल्पना शायद उनके मानस में कभी नहीं उठी । वह सदा अभय और साहसी बालक के रूप में अपने साथियों में सबसे आगे रहे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org