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श्रमण भगवान् महावीर
एकबार कुमार वर्धमान अपने हमउम्र साथियों के साथ खेल रहे थे । अचानक वृक्षों के झुरमुट में से एक भयंकर नाग फुंकारता हुआ दिखलाई पड़ा। सभी साथी डरकर इधर-उधर भागने लगे । वर्धमान ने ललकारा -"क्या हुआ ? भाग क्यों रहे हो ?"
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"साँप है. साँप बालकों ने दबी आवाज में कहा । " है तो क्या''''वह अपने रास्ते जा रहा है, तुम अपना काम करो ! तुम उसे तकलीफ नहीं दोगे, तो वह तुम्हें व्यर्थ ही क्यों काटेगा ?” – कुमार वर्धमान ने सांत्वना दी ।
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तब तक फुंकारता हुआ नाग वर्धमान के काफी पास में आ चुका था, साथी दूर-दूर भाग गए । पर साहसी कुमार वर्धमान न डरा, न भागा । उसने बड़ी स्फूर्ति के साथ नाग को पकड़ा और एक रस्सी की तरह घुमाकर दूर फेंक दिया ।
वर्धमान के साहस पर सभी साथी चकित थे । परिवार के बड़ों को जब यह बात मालूम हुई तो वे हर्षमिश्रित आश्चर्य के साथ वर्धमान को - 'वीर' कहकर पुकार उठे । तब वर्धमान लगभग साल आठ वर्ष के होंगे ।
पौराणिक उक्ति के अनुसार कोई देवता नाग का रूप धारण कर वर्धमान के साहस की परीक्षा करने आया था । और वर्धमान को परीक्षा में शतप्रतिशत उत्तीर्ण पाया, तो प्रसन्न होकर चला गया । कुछ भी हो, तथ्य यह है कि कुमार वर्धमान को इसका कोई अतापता नहीं था, उनकी कल्पना में तो वह मात्र एक दुष्ट नाग ही था और वर्धमान ने उसे निर्भीकतापूर्वक उठाकर फेंक दिया ।
गरीबों का मसीहा :
वर्धमान महावीर के मानस में साहस के साथ करुणा का निर्मल स्रोत भी इस प्रकार बह रहा था - जैसे कि कठोर चट्टानों के नीचे स्वच्छ शीतल जल-प्रवाह ! प्राणिमात्र के प्रति उनका हृदय मैत्री एवं करुणा की धारा से आप्लावित था । और खासकर गरीबों एवं असहायों के प्रति तो करुणा की अनेक घटनाएँ उनके जीवन में घटित हुई । बचपन से ही उनका मानस संवेदनशील और अनुभूतिप्रधान
१. महावीर चरियं ( नेमिचन्द्र ), ७५०
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