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________________ श्रमण संस्कृति के महान् उद्भावक श्रमण भगवान महावीर ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भारत का पूर्वांचल क्रांतिकारी मोड़ से गुजर रहा था । सामाजिक व धार्मिक जगत् में क्रांति के स्वर गूज रहे थे। मगध का वायूमंडल क्रांति के आघोष से प्रतिध्वनित हो रहा था। इस क्रांति के नव सर्जक थे राजकुमार वर्धमान ! श्रमण भगवान् महावीर! राजकूमार वर्धमान से श्रमण भगवान् महावीर तक की यह यात्रा-एक महान् धार्मिक जागरण की यात्रा है, एक अभूतपूर्व अहिंसाप्रधान शीत-क्रांति की कहानी है। मगध जनपद के वैशाली-क्षत्रिय कुंड के अधिशासक थे ज्ञातृवंशीय राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय ! राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला ने एक अपूर्व तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। जन्म की वह तिथि थी ई० पू० ५९६, चैत्र शुक्ला १३ । वैशाली (प्राचीन विशाला नगरी ) उस देवगुणसम्पन्न पुत्ररत्न को प्राप्त कर एक अलौकिक आलोक से चमत्कृत हो उठी। राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला के आनंद का कहना ही क्या ! माता-पिता ने पुत्र को परिवार एवं राज्य की सुखसमृद्धि की अभिवृद्धि का प्रतीक मानकर वर्धमान नाम रखा। सिद्धार्थ के बड़े पुत्र का नाम नंदीवर्धन था, वर्धमान छोट थे. अतः लाडले पुत्र थे। लिच्छवि गणतंत्र के गणराजा महाराज चेटक वर्धमान के मामा थे। ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार मगध आदि पूर्व भारत के क्षत्रिय-'वात्य क्षत्रिय' कहलाते थे। क्षत्रिय वंश की यह परम्परा शौर्य एवं तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में समान प्रभुत्व रखती थी। महाराज ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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