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________________ ५० श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना तथा 'जयजगत्' का मूल आधार है-उसे अहिंसा ही दे सकती है, अन्य कोई नहीं। अहिंसा विश्वास की जननी है । और, विश्वास परिवार, समाज, राष्ट्र तथा इस क्रम में सम्पूर्ण विश्व के पारस्परिक सद्भाव, स्नेह और सहयोग का आधार है। अहिंसा 'संगच्छध्वम्, संवदध्वम्" की ध्वनि को जन-जन में अनुगुजित करती है, जिसका अर्थ है-'साथ चलो, साथ बोलो'। मानव जाति को एक सूत्र में बाँधने के लिए 'एकसाथ' का यह मन्त्र बड़ा महान मन्त्र है। अहिंसा हृदय को वस्तु है, पवित्र निधि है। मानव-हृदय की व्यापक प्रगति ही तो अहिसा है। और, इस संवेदना की व्यापक प्रगति ही परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के उदभव एवं विकास का मूल है। यह ठोक है कि इस विकास-प्रक्रिया में रागात्मक भावना का भी बहत बड़ा अंश है, पर इससे क्या होता है ? आखिर तो यह मानवचेतना की ही एक विशुद्ध भावनात्मक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया अहिंसा है। अहिंसा भगवती के अनंत रूपों में से यह भी एक रूप है। इस रूप को अहिंसा के मंगल क्षेत्र से बाहर ढकेलकर मानव मानवता के पथ पर एक चरण भी ठीक तरह नहीं रख सकता। अहिंसा मानव जाति को हिंसा से मुक्त करती है, वैर, वैमनस्य, कलह, घृणा, ईर्ष्या-द्वेष, दुःसंकल्प, दुर्वचन, क्रोध, अभिमान, दम्भ, लोभ-लालच, शोषण, दमन आदि जितनी भी, व्यक्ति और समाज की ध्वंसमूलक विकृतियाँ हैं, ये सब हिंसा के ही भिन्न-भिन्न रूप हैं। इनको दूर करने का अहिंसा का सिद्धान्त है कि-क्रोध को क्रोध से नहीं, क्षमा से जीतो। अहंकार को अहंकार से नहीं, विनय एवं नम्रता से जीतो। दंभ को दम्भ से नहीं, सरलता और निश्छलता से जीतो। लोभ को लोभ से नहीं, संतोष से जीतो, उदारता से जीतो। इसी प्रकार भय को अभय से, घणा को प्रेम से, जीतना चाहिए। अहिंसा प्रकाश को अन्धकार पर, प्रेम की घणा पर, सदभाव की वैर पर तथा अच्छाई की बुराई पर विजय का अमोघ उद्घोष है। यही वह पथ है, जिस पर चलकर मानव मानव को मानव समझ सकता है, उसे प्रेम की बाहों में भर सकता है। इसी से विश्वबंधुत्व एवं विश्वशांति का स्वप्न पूर्ण हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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