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भा. भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर २१३
२. णायकुमार चरिउ (नागकुमार चरित्र) ३. जसहर चरिउ (यशोधर चरित) ४. कोश ग्रंथ--यह देशज शब्दों का सुन्दर कोशपथ है ।
इसके अतिरिक्त जिन जैन साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य में जैन धर्म सम्बन्धी साहित्य की सर्जना की उनमें निम्न उल्लेखनीय हैं ।
धनपाल ( भविसयत्त कहा ), मुनि रामसिंह (पाहुड़ दोहा ), अभयदेवसूरि (जय तिहुअण), श्री चन्द्रमुनि (पुराणसार), कनकामर मूनि (करकंड चरिउ), णयनंदिमुनि (सुदंसण चरिउ), श्री जिनवल्लभ सूरि (बृद्ध नवकार), श्री णिनदत्त सूरि (चाचरि, कालस्वरूप कुलक), उवसए (सायण), योगचन्द्र मुनि (योगसार), आचार्य हेमचन्द्र सूरि (सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन, योगशास्त्र, प्राकृत व्याकरण, छन्दोनुशासन, देशी नाममाला कोष), हरिभद्रसूरि, शालिभद्र सूरि, सोमप्रभ सरि, जिनपद्म सूरि, विनयचन्द्र सरि, (नेमिनाथ चउपई) धर्मसूरि, विजयसेन सूरि, मेरुतुग (प्रबंध चिन्तामणि), अम्बदेव सूरि, राजशेखर सूरि आदि।
१५ वीं शताब्दी में श्वेताम्बराचार्य विजयभद्र ने 'गौतम रासा' की रचना की, विद्धण ने 'ज्ञान पंचमी चउपई' तथा दयासागर सूरि ने 'धर्मदत्त चरित्र' नामक प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की। उसके बाद भी जैन साहित्य की विकासमानधारा निरंतर आगे बढ़ती गई। जैन साहित्य का हिन्दी में प्रचुर प्रणयन होता रहा । उन सबों का, साहित्य, इतिहास, धर्म-अध्यात्म आदि की दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है।
मध्यकाल के धार्मिक आन्दोलन को भी जैन साहित्यकारों ने तथा जैन सिद्धांतों से काफी प्रभावित किया। और, साहित्य में युद्ध साहित्य के बजाय प्रचुर परिमाण में भक्तिपरक साहित्य का सृजन होने लगा । इस साहित्य में, अहिंसा, सत्य, प्रेम, करुणा, समता आदि पर बड़े परिमाण में साहित्य रचे गये। ___ आधुनिक युग में जैन साहित्य सर्जना की एक विशाल एवं व्यापक परम्परा देखी जा रही है। जहाँ एक ओर जेन मुनिराजों द्वारा आगमों पर भाष्य, व्याख्या एवं टोका साहित्य तथा मौलिक उद्भावनाओं से पूर्ण साहित्य की सर्जना होरही है, वहाँ दूसरी ओर विभिन्न
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