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________________ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना (अणुवयरयणपईव), सुमतिगणी (नेमिनाथरास), जिनचन्द्रसूरि (फाग), आबू ( आबूरास ) हरिदेव ( मयण पराजय चरिउ ) और पं० रघू ( पउम चरिउ, हरिवंशपुराण, आदिपुराण, सम्यक्त्व भावना, जिनदत्तच उपई आदि अनेक ग्रंथ) आदि । इस काल में शालिभद्र सूरि का 'भरत बाहुबलि रास' रासक ग्रंथों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । १४ वीं - १५ वीं शताब्दी में भी अपभ्रंश का प्रतुर विकास हुआ है । १५ वीं सदी के धनपाल कवि विरचित बाहुबलि एवं लखनदेय कृत णमिणाह चरिउ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं । २१० आख्यायिका के क्षेत्र में अपभ्रंश साहित्य में लघुकथाओं का महत्त्वपूर्ण निर्माण हुआ है । इसने नयनंदि रचित 'सकल विधि विधान कहा', चन्द्रकृत 'कथाकोश' एवं रत्नकरंड शास्त्र' अमरकीर्ति निर्मित ' छक्कम्मोवएसु' लक्ष्मण रचित 'अणुवय रयण- पईउ' रइघूकृत 'पुण्णासव कहा कोसो', बालचन्द रचित 'सुगंधदहमीकहा ' तथा 'fiesसत्तमीकहा', विनयचन्द्र प्रणीत 'णिज्झर पंचमी कहा' यशः कीर्ति कृत 'जिणरत्तिविहाण कहा' एवं 'रविव्रत कहा' आदि विशेष उल्लेखनीय हैं । १७ 3 इस प्रकार संक्षिप्त दृष्टि फेरने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अपभ्रंश भाषा में विपुल परिमाण में जैन साहित्य का सृजन हुआ है । अभी उसमें और भी शोध की आवश्यकता है । हिन्दी भाषा और साहित्य हिन्दी साहित्य के उद्भव और विकास के इतिहास पर जब हम दृष्टिपात करते हैं, तब यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दो साहित्य के उद्भव और विकास में जैन मुनियों, एवं जैन साहित्यकारों का योगदान बड़ा महत्त्वपूर्ण है । हिन्दी भाषा का उद्भव, जो कि इतिहाससम्मत तथ्य है, प्राकृत भाषा से हुआ है । उद्भव तो प्राकृत भाषा से हुआ ही है, साथ ही उद्भव के पश्चात् हिन्दी साहित्य के लगभग मध्यकालपर्यन्त अपभ्रंश भाषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होता है । १७. डा० हीरालाल जैन 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान' पृ० १६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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