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________________ भा. भाषा एवं साहित्य में श्रमण संस्कृति के स्वर २०७ शिष्य रामचन्द्र ने तो १०० नाटकों की रचना को, किंतु वे सभी आज उपलब्ध नहीं हैं। उनके नाटकों में-निर्भय भीम व्यायोग, जलविलास, कौमुदी-मित्रानन्द, रघविलास, रोहिणी मृगांक, वनमाला आदि उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त हस्तीमलजी (१३ वीं शती) ने विक्रांत कौरव, सुभद्रा, मैथिलीकल्याण, अंजना पवनंजय, उदयनराज, भरतराज, अर्जुनराज और मेघेश्वर आदि नाटकों की रचना की । रामभद्र का 'प्रबुद्ध रोहिणेय', यशपाल का 'मोहराज पराजय', जयसिंह सूरि का 'हम्मीरमद मर्दन', रत्नशेखर कृत 'प्रबोध चन्द्रोदय', मेघप्रभाचार्यकृत 'धर्माभ्युदय' आदि के अतिरिक्त सत्य हरिश्चन्द्र, राघवाभ्युदय, यविलास, मल्लिकामकरंद, रोहिणीमृगांक, चन्द्रलेखा विजय, मानमुद्रा भंजन, करुणावज्रायुद्ध, द्रौपदी स्वयंवर आदि नाट्य साहित्य को अनमोल निधियाँ हैं। ___ स्तोत्र साहित्य-में जैनाचार्यों ने प्रचुर रचना की। भक्तामर. स्तोत्र, कल्याण मंदिर स्तोत्र, द्वात्रिंशिकाएँ, अन्ययोग एवं अयोग व्यवच्छेदिकाएँ, वृहत्स्वयंभूस्तोत्र स्तुति विद्या, जिनशतक, विषापहारस्तोत्र, एकीभावस्तोत्र, सरस्वती स्तोत्र, जिनचतुर्विशतिका, वोतरागस्तोत्र, सिद्ध गुण स्तोत्र, चतुर्विशति जिन स्तुति, सरस्वती भक्तामर, नेमि भक्तामर स्तोत्र आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। __ज्योतिष रत्नमाला एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसके अतिरिक्त गणित तिलक, भारचन्द्र ज्योतिष सार, आरंभ सिद्धि, भुवनदीपक आदि ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। आयुर्वेद के विषय में भी जैनाचार्यों ने संस्कृत में बड़े महत्त्व को रचनाएँ की हैं। रसावतार, रसायन प्रकाश, जीवकतंत्र, वैद्यसार संग्रह, लक्ष्मण प्रकाश, कल्याणकारक, योगरत्नाकर, सिद्धान्त रसायनकल्प, नागार्जुनकल्प, नागार्जुन कक्ष पुट एवं योग चिन्तामणि प्रभृति बहुमूल्य कृतियाँ हैं। नीति के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र ने 'अर्हन्नीति' नामक एक अमूल्य ग्रंथ की रचना की है, इसमें धर्म के अतिरिक्त राजनीति, युद्धनीति आदि विषयों पर भी बड़ो मौलिक उद्भावना है। ___ जैन आचार्यों ने अन्य विधाओं एवं विषय-बिंदुओं के अतिरिक्त योग विषय पर भी बड़े ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की सर्जना को है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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