________________
श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
पाश्वभ्युदय द्विसंधानकाव्य, यशस्तिलक, तिलकमंजरी, भरतबाहुबली महाकाव्य, पद्मानन्द महाकाव्य, धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य, जैन कुमार संभव, यशोधर चरित्र, पांडव चरित्र आदि मुख्य हैं ।
२०६
कथा एवं आख्यायिका के क्षेत्र में उपमिति भव प्रपंचा, कुवलयमाला, आराधना, कथाकोश, आख्यानमणिकोश, कथारत्नसागर, दान कल्पद्र ुम, सम्यक्त्व कौमुदी, कथा रत्नागार आदि उल्लेखनीय कथा ग्रंथ हैं । जैनाचार्यों ने कतिपय गौरवमय पुराणों की भी रचना की है, जिनमें आदिपुराण महापुराण, उत्तरपुराण, हरिवंश पुराण, शांतिपुराण, पुराणसार संग्रह आदि महत्त्वपूर्ण हैं ।
छंद - अलंकार - के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्रकृत छन्दोनुशासन एक गौरवपूर्ण रचना है । इनके अतिरिक्त वाग्भट्ट रचित छन्दोनुशासन भी मिलता है । एक छन्दोनुशासन जयकीर्ति प्रणीत भी प्राप्त है । इसके अतिरिक्त छन्दोरत्नावली, रत्नमंजूषा, काव्यानुशासन, अलंकार चिंतामणि, अलंकार चूड़ामणि, कविशिक्षा, वाग्भटालंकार, कविकल्पलता, अलंकार प्रबोध, अलंकार महोदधि प्रभृति बड़े ही उपयोगी ग्रंथ संस्कृत साहित्य में रचे गये ।
संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना में भी जैनाचार्यों ने बड़ा ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। पूज्यपाद स्वयम्भू, शाकटायन, शब्दाम्भोजभास्कर ने संस्कृत में व्याकरण ग्रन्थों की रचना की । किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने सर्वांगपूर्ण व्याकरण 'सिद्ध हेमशब्दानुशासन' की रचना की। उन्होंने व्याकरण के पाँचों अंगों -- सूत्र, गणपाठ सहितवृत्ति, धातुपाठ, उणादि और लिंगानुशासन - आदि पर एकाकी रचना करके संस्कृत में स्वतंत्र व्याकरण का निर्माण किया उसके पश्चात् शब्दसिद्धिव्याकरण, मलयगिरि व्याकरण, विद्यानन्द व्याकरण आदि उल्लेखनीय व्याकरण ग्रन्थों की रचना हुई ।
संस्कृत भाषा में जैनाचार्यों ने कोषग्रन्थों का भी महत्त्वपूर्ण निर्माण किया उनमें से धनंजय नाममाला, अपवर्ग नाममाला, अमरकोश, अभिधान चिंतामणि, अनेकार्थ संग्रह, निघंटु शेष, शारदीय नाममाला आदि प्रमुख हैं ।
जैनाचार्यों का संस्कृत नाटक- साहित्य बड़े गौरव के साथ याद किया जाता है। जैसी कि जनश्रुति है, आचार्य हेमचन्द्र के सुयोग्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org