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________________ ૧૦ गीता और श्रमण संस्कृति : एक तुलनात्मक अध्ययन भारत अनादिकाल से ही संस्कृति के क्षेत्र में विश्वगुरु रहा है । इसका प्रधान कारण यह है कि समन्वय की उदात्त भावना भारतीय संस्कृति का मूल मन्त्र है । भारत के अंचल में भारतीय संस्कृति दो धाराओं में प्राचीनतम काल से प्रवाहित होती आई है - वैदिक संस्कृति और श्रमणसंस्कृति । श्रमण संस्कृति भी आगे चलकर दो धाराओं में विभक्त हो गई - जैन संस्कृति एवं बौद्ध संस्कृति । इन तीनों संस्कृतियों की समन्विति ही भारतीय संस्कृति है । इन तीनों संस्कृतियों ने ही भारतीय जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति का प्रवाह एक विशाल नदी की भाँति, राह की छोटीमोटी नदियों को अपने में समाविष्ट करता हुआ, हजारों-हजार वर्षों से भारतभूमि को आप्लावित और समृद्ध करता रहा है । सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक संस्कृति के धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन, अनुशीलन, चिन्तन और मनन के साथ स्याद्वादमुद्रात्मक ऐकात्म्य सम्बन्ध स्थापित किया जाए । प्रस्तुत लेख में गीता और श्रमण संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है । गीता के उन विषयों को देखना है जो कि श्रमण संकृति से मेल खाते हैं । वैसे तो गीता के अधिकतम श्लोक ऐसे हैं, जो जैनदर्शनसम्मत तथ्य प्रकट करते हैं । किन्तु प्रत्येक श्लोक की चर्चा एक विस्तृत ग्रन्थ का रूप ले लेती है; अतः यहाँ संक्षेप में प्रमुख प्रमुख स्थलों पर ही विचार किया जाता है : Jain Education International १६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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