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________________ तुलनात्मक समीक्षा १५७ अस्तेय-अस्तेय का अर्थ है मन, वचन, शरीर से किसी दूसरे के द्रव्य को ग्रहण न करना और न उसके ग्रहण की इच्छा करना । वैदिक धर्म में 'अस्तेय' को अति निन्दित माना गया है । ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है कि कभी भी दूसरे के धन को लेने की इच्छा न करे-मा गृधः कस्यस्चिद् धनम् । जैन धर्म में आवश्यकता से अधिक का मंग्रह करना 'स्तेय' कहा गया है और आवश्यकता से अधिक ग्रहण न करना 'अस्तेय' कहा जाता है। 'ब्रह्मचर्य-मन, वचन, काय से समस्त इन्द्रियों का संयम करना ब्रह्मचर्य है। वैदिक, बौद्ध, जैन एवं अन्य धर्मों में ब्रह्मचर्यपालन एक आवश्यक धर्म बताया गया है। भारत के समस्त धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि स्मरण, कीर्तन, केलि, प्रेक्षण, गुह्य भाषण, संकल्प, अध्यवसाय और संभोग-इन आठ प्रकार के मैथुनों को, ब्रह्मचर्य के साधकों को सदैव परित्याग करना चाहिए। जैन धर्म में "सत्य, तप, प्राणिदया, और इन्द्रिय-निरोधरूप ब्रह्मचर्य के अनुष्ठान को ब्रह्मचर्य कहा गया है।"५८ वस्तुतः कायिक, वाचिक एवं मानसिक-समस्त प्रकार की वासनाओं का परित्याग करना ही 'ब्रह्मचर्य' है। क्योंकि विषयवासना पतन का मार्ग है और 'ब्रह्मचर्य' आत्मोन्नति का सर्वोत्तम साधन। 'अपरिग्रह'-अपरिग्रह सांसारिक स्वार्थों के त्याग का नाम है। अर्थात् संसार के समस्त विषयों से राग तथा ममता का परित्याग कर देना अपरिग्रह कहलाता है। वर्णव्यवस्था: भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम व्यवस्था का सर्वाधिक महत्त्व माना गया है। वैदिक संस्कृति में वर्णव्यवस्था जाति के आधार पर नहीं, बल्कि कर्म के आधार पर मानो गयी है। वेदों में एक मन्त्र को छोड़कर और कहीं भी ब्राह्मणादि वर्गों का उल्लेख नहीं है। शुक्रनीति में बताया गया है कि "विश्वामित्र, वसिष्ठ, मतंग और नारदादि ऋषियों ने तप के प्रभाव से उत्तमपद को प्राप्त किया था, जाति से नहीं।" १९ श्रमणसंस्कृति में भी वर्ण-व्यवस्था कर्म के १८. सूत्रकृतांग सूत्र.-आचार्य शीलाङ्क। १६. विश्वामित्रो वसिष्ठश्च मतंगो नारदादयः । तपोविशेषसंप्राप्ताः उत्तमत्वं न जातितः ।। -शुक्रनीति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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