SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक समीक्षा १५५ संस्कृति में दान का विशेष महत्त्व प्रतिपादित किया गया है । श्रमणों के लिए विहार तथा उनके भोजन आदि की व्यवस्था दान से ही होती थी। उनके अनुसार हमने जो कुछ दिया, वह पा लिया और जो कुछ देंगे, वह पाएँगे। ___ 'दया'----दया को ही करुणा भी कहते हैं। भारतीय संस्कृति मे दया को सबसे बड़ा पुण्य माना गया है । १४ महाभारत में कहा गया है कि संसार में प्राणों से बढ़कर प्रिय कोई अन्य वस्तु नहीं है। अतः मनुष्यों को अपने समान ही प्राणियों पर दया करनी चाहिए।१५ आचार--भारतीय संस्कृति में आचार का सबसे अधिक महत्त्व है। आचार ही मानव की उन्नति का प्रमुख साधन है और यही प्रथम धर्म है (आचारः प्रथमो धर्मः) । वैदिक संस्कृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि आचारहीन व्यक्ति को तो वेद भी पवित्र नहीं कर सकता (आचारहीनं न पुनातिवेदः)। श्रमण संस्कृति में आचार के पाँच प्रकार के आचरण बताए गए हैं। उनके नाम है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । श्रमणसंस्कृति में इनके पालन पर विशेष जोर दिया गया है और इन्हें 'पञ्चमहावत' कहा गया है। योगशास्त्र में प्रतिपादित आठ प्रकार के योगाङ्गों में भी इन पाँचों को 'यम' के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है। ___ 'अहिंसा'-अहिंसा श्रमण संस्कृति की सबसे महत्त्वपूर्ण देन है । 'अहिंसा' श्रमणसंस्कृति का प्राण है। महावीर स्वामी का उपदेश है कि 'सबको अपना जीवन प्रिय होता है । अतः किसी को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए, किसी की हिंसा नहीं करनी चाहिए।' दशवकालिक में बताया गया है कि "प्राणों की हिंसा करना धर्म नहीं हो सकता। अहिंसा, संयम और तप यही वास्तविक तप हैं।"१६ जैन धर्म में. १४. नास्ति दयासमं पुण्यं पापं हिंसासमं नहि। -देवी भागवत १५. नास्ति प्राणात् प्रियतरं लोके किञ्चन विद्यते । तस्मात् दया नरः कुर्यात् यथात्मनि तथा परे। -महाभारत अनु० ११६१८ १६. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो । -दशवकालिक ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy