SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना का उल्लेख मिलता है । 3 ब्राह्मण ग्रन्थों और सूत्रों में 'ब्रात्यस्तोत्र' यज्ञ का विधान बताया गया है, जिसमें व्रात्यों को शुद्ध कर वैदिक परम्परा में सम्मिलित करने का वर्णन है । ये व्रात्य तत्कालीन श्रमणपरम्परा के गृहस्थ मालूम होते हैं, जो वेदों का विरोध करते थे और इन्द्र को नहीं मानते थे । 1 ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय इन्हें अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था और इसी कारण 'इन्द्र' ने इन्हें शालावृकों से नोचवाया था । ताण्ड्य ब्राह्मण में भी इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है । ५ बाद में उन्हें दीक्षित करके वैदिक परम्परा में सम्मिलित कर लिया जाने लगा था । उपर्युक्त विवेचन से यह प्रतीत होता है कि भले ही श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृति के समकालिक न हो, भले ही जैन तीथङ्कर ऋषभदेव वैदिक ऋषभदेव से भिन्न रहे हों, पर इतना तो स्पष्ट ही है कि श्रमण संस्कृति की आधारशिला वैदिक संस्कृति ही थी । मेरे विचार से श्रमण संस्कृति उपनिषद्कालीन संस्कृति प्रतीत होती है । क्योंकि वैदिककाल में देवी-देवताओं की पूजा और यागादि अनुष्ठानों की प्रमुखता थी और आत्मा, कर्मसिद्धान्त, पुनर्जन्म, तप, त्याग, वैराग्य, ब्रह्मचर्य आदि जो श्रमण संस्कृति के प्रमुख आधार हैं, का विवेचन उपनिषद्काल में ही मिलता है । और उपनिषदों में श्रमण संस्कृति की विस्तृत रूपरेखा भी दृष्टिगोचर होती है। पुराणकाल में तो जैन सम्प्रदाय के आदितीर्थङ्कर ऋषभदेव को विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाने लगा था । श्रीमद्भागवत में ऋषभदेव को एक अवतार के रूप में स्वीकार किया गया है ।" ऋषभदेव के ईश्वर के रूप में पूजे जाने की मान्यता इतनी दृढमूल हो गई थी कि शिवपुराण में भी उन्हें शिव के अट्ठाईस योगावतारों में गिनाया गया है । ३. अथर्ववेद अध्याय १५ ४. इन्द्रो यतीन् शालावृकेभ्यो प्राच्छत् । ५. ताण्ड्य ब्राह्मण ८|११४ ६. श्री मदभागवत ५।५।२८।३१ Jain Education International - तैत्तरीयसंहिता ६।२७१५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy