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________________ वैदिक संस्कृति और श्रमण संस्कृति को तुलनात्मक समीक्षा वदिक संस्कृति के समान श्रमणसंस्कृति भी प्राचीन संस्कृति मानी जाती है। प्रायः 'श्रमण' शब्द का प्रयोग जैन और बौद्ध दोनों के साधुओं के लिए किया जाता है, किन्तु दोनों की संस्कृति अलगअलग होने से यहाँ पर 'श्रमण संस्कृति' से जैन संस्कृति हो ग्राह्य है। जनकल्याण की भावना और जीवमात्र पर दया करना, यही श्रमण संस्कृति का मूल उद्देश्य है। 'वसुधैव-कुटुम्बकम्' के आदर्श को सामने रखकर जीवमात्र में समभाव रखना ही श्रमण संस्कृति' है। श्रमणसंस्कृति के सारे आचार-विचार इसी 'समत्व' के आदर्श को ओर संकेत करते हैं। वैदिक संस्कृति के मूल में भी यही समत्व भावना निहित है। _ मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे हम सबको मित्र की दृष्टि से देखें । गीता में भी इस 'समत्व' का महत्त्व प्रतिपादित है। सिद्धि-असिद्धि में सम होकर कर्म करना ही 'समत्वयोग' है।' श्रमण संस्कृति भारत की प्राचीनतम संस्कृति : जैन-परम्परा श्रमण संस्कृति को वैदिककालीन संस्कृति स्वीकार करती है। क्योंकि वेदों में श्रमण संस्कृति के प्रवर्तक आदितीर्थङ्कर ऋषमदेव का नाम आया है ।२ और अथर्ववेद में वात्यों १. सिद्ध्यसिद्ध्योः समोभूत्वा समत्वं योग उच्यते ।। -भगवद्गीता, २०४८ २. ऋग्वेद १०६१।१४ १५१ . For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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