________________
श्रमण संस्कृति की सार्वभौमिकता
१३६
की प्रचरता वाले देश के निवासी इसलिए दुःखी है कि सुख के साधनों से वे ऊब गये हैं। क्या देश में बेहाल घूमने वाले हिप्पियों को देखकर शङ्का के लिए कोई स्थान रह जाता है कि केवल भौतिक सुख शान्ति और सन्तोष नहीं दे सकते ?
तब युग की माँग है कि संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए श्रमण संस्कृति के सबके लिए कल्याणकारी सिद्धान्तों का प्रसार हो ।
उसके लिए श्रमण संस्कृति के महापुरुष भगवान् महावीर की निर्वाण शताब्दी एक उत्तम अवसर है । यदि भगवान् महावीर के प्रति उनके अनुयायियों में सच्ची निष्ठा हो तो उन्हें श्रमण संस्कृति की सार्वभौमिकता को ध्यान में रखकर उस दिशा में प्रयत्नशील होना आवश्यक है |
पर यह तब होगा जब वे इन तत्त्वों के अनुसार अपने जीवन को ढालकर निःस्वार्थ भाव से उन महान् तत्त्वों के प्रसार में अपने जीवन को समर्पित करेंगे। श्रमण संस्कृति के सिद्धान्तों के यही अनुकूल है कि हम भगवान् महावीर के बाह्य चिह्नों के प्रसार से अधिक महत्त्व उनके सिद्धान्तों के प्रचार को दें ।
श्रमण संस्कृति के उपासकों से अपेक्षा तो यही है कि वे भगवान् महावीर के तत्त्वों का अनुसरण कर, उनके प्रसार में अपने आपको समर्पित करें | अपने व्यक्तित्व को उन्हें समर्पित कर दें। इससे बढ़कर कोई ऐसी भक्ति नहीं है जो भक्त का सही विकास कर सके ।
— श्री रिषभदास रांका
Jain Education International
α
0
०
०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org