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________________ श्रमण संस्कृति की सार्वभौमिकता १३५ कलाओं की उन्नति भी उस समय काफी हुई थी। मयासुर द्वारा पांडवों का बनाया भवन इतना कलापूर्ण था कि जहाँ जल का बिन्दु न हो वहाँ जल दिखाई देता था और जल की पूष्करणी इस प्रकार दिखाई देती थी मानो सूखी जमीन हो। पर इस समृद्धि ने सद्गुणों के अधिक विकास की जगह ईर्ष्या, द्वेष, मत्सर आदि दुर्गुणों का निर्माण किया। भौतिक विकास के साथ-साथ आत्मिक शक्तियों का विकास भी उस काल में दिखाई देता है, पर भौतिकता के आगे आध्यात्मिकता की दुर्गुणों के आगे सद्गुणों की शक्ति कुछ कम पड़ी, जिससे धर्म और न्याय के लिए महाभारत का युद्ध हुआ। जिसने अन्याय या अधर्म के पक्ष के नाश के साथ-साथ न्यायी एवं धार्मिक पक्ष को भी इतना दुर्बल बना दिया कि उनकी जीत भी हार में परिवर्तित हो गई। उस समय के समझदार और युग के महापुरुष कृष्ण द्वारा लड़ाई टालने के सभी प्रयत्न निष्फल हुए। युद्ध हुआ और उसमें विजयी पक्ष भी इतना जर्जर बन गया कि वीर अर्जुन यादव स्त्रियों को दस्युओं के हाथ से बचा नहीं पाये। इस दारुण स्थिति ने चिन्तकों को चिन्तन के लिए बाध्य किया। और दिखाई देता है कि भौतिक सुखों की निस्सारता समझकर प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्तिमार्ग और अहिंसादि गुणों के विकास की ओर लोगों को जाना पड़ा। ___ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि महाभारत युद्ध आज से ३००० से ३५०० वर्षों पूर्व हुआ होगा। उस काल में हिंसा के दुष्परिणामों की समाज पर जो प्रतिक्रिया हुई उससे ऋषि, मुनि, चिन्तक अहिंसा को सर्वश्रेष्ठ धर्म मानने लगे। चाहे कितना भी बड़ा आघात लगे पर समाज में परिवर्तन एक साय नहीं होता। समाज रूढ़ विचारों को जल्दी नहीं छोड़ता। इस लिए जिन चिन्तकों को प्रवृत्ति से निवृत्ति श्रेष्ठ मालूम दी, बाह्यसुखों से आन्तरिक सुखों का मूल्य अधिक मालूम हुआ, वे गृह त्यागकर जङ्गल में जाकर आत्मविकास का प्रयत्न करते थे। उस समय भारतीय संस्कृति में समन्वय काफी अंशों में हो गया था, फिर भी ब्राह्मण और श्रमण दो धाराएं अलग-अलग प्रवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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