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________________ श्रमण संस्कृति : परम्पराएँ तथा आधुनिक युगबोध १२५ 1 जैसा कि ऊपर बतलाया गया है, ब्राह्मण संस्कृति का मूल आधार यज्ञ-यागादि था, जिसको सम्पन्न करने के लिए पशु हिंसा आवश्यक मान ली गई थी । ब्राह्मणों के द्वारा यज्ञ सम्पन्न होते थे । यज्ञ में पशु हिंसा को हिंसा न माने जाने का प्रावधान कर दिया गया - (वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति ) । यज्ञों के लिए कृषि योग्य पशु होम दिये जाते थे । परिणाम यह हुआ कि देश का कृषक वर्ग दुःखी हो गया । यज्ञकर्त्ता राजा अपने सैनिकों के द्वारा कृषि -उपयोगी पशु पकड़वा कर मंगा लेता और यह अमानवीय कृत्य ब्राह्मणों के निर्देश तथा इशारे पर होता था । परिणामतः जनमानस में ब्राह्मणों के सम्बन्ध में क्षोभ बढ़ गया । यह सत्य है कि जिन ब्राह्मणों के विरुद्ध जन-मानस में क्रोध, क्षोभ बढ़ा, वह ब्राह्मण संस्कृति के हामी थे । किन्तु ऐसे भी कई विचारक ब्राह्मण थे, जो जन्मना ब्राह्मण होते हुए भी श्रमण संस्कृति के हामी थे या हामी हो गये थे। भगवान् महावीर के ११ प्रमुख शिष्य ( गणधर ) स्वयं ब्राह्मण थे । जो श्रमण संस्कृति के केवल हामी ही नहीं, अपितु पुरस्कर्ता थे । यह स्पष्ट है कि वेदकालीन ब्राह्मण संस्कृति निवृत्तिगामी नहीं थी, अपितु प्रवृत्तिगामी थी। ऋषि-मुनि अधिकतर गृहस्थ होते थे । उनके द्वारा की हुई प्रार्थनाएँ अधिकतर भौतिक समृद्धि के लिए या प्राकृतिक आपत्ति से रक्षा के लिए हुआ करती थी । हम देखते हैं कि उपनिषद्काल में यह क्रम परिवर्तन हो गया । ऋषि-मुनि अध्यात्मप्रधान आत्मविद्या में भी निपुण थे। कई क्षत्रिय तो आत्म-विद्या में इतने प्रवीण थे कि ब्राह्मण उनके पास जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे । जैसा कि छांदोग्योपनिषद् में ऋषि पुत्र श्वेतकेतु और प्रवाहण क्षत्रिय के संवाद से स्पष्ट है । इसी प्रकार बृहदारण्यक उपनिषद् के छठ अध्याय में राजा प्रवाहण ने आरुणी से कहा कि "इसके पूर्व यह अध्यात्म विद्या किसी ब्राह्मण के पास नहीं रही, वह मैं तुम्हें बताऊँगा ।" संभवतः यही कारण था कि जन मानस में उस युग में ब्राह्मण वर्चस्व कम हो गया तथा क्षत्रिय वर्चस्व उत्तरोत्तर तरक्की करता गया । जन-मानस ब्राह्मण को आदर की दृष्टि से नहीं देखता था । इसी पृष्ठभूमि में यह धारणा उत्पन्न हुई कि जैन तीर्थंकर का जन्म ब्राह्मण कुल में न होकर क्षत्रिय कुल में होता है । ब्राह्मणपरम्परा में भी वामन तथा परशुराम को छोड़कर सब अवतार क्षत्रिय कुल में ही जन्मे थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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