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________________ જી श्रमण संस्कृति : परम्पराएँ तथा आधुनिक युगबोध STक्टर बैजनाथपुरी ने संस्कृति तथा सभ्यता के अन्तर को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि संस्कृति आभ्यन्तर है तथा सभ्यता बाह्य । संस्कृति का सम्बन्ध निश्चय ही धार्मिक विश्वास से है । हमारे देश में दो संस्कृति मुख्य रही हैं (१) श्रमण संस्कृति, (२) ब्राह्मण संस्कृति | यह निर्विवाद है कि ब्राह्मण संस्कृति में यज्ञयाग तथा तज्जनित हिंसा कर्मकाण्ड जन्मना जाति तथा वर्ण का प्राधान्य था । तथा श्रमण संस्कृति में यज्ञ याग का कर्मकांड के रूप में कोई अलग से प्रावधान नहीं था, अपितु यज्ञ का तात्पर्य आत्मलक्ष्य किया जाता था । इस कारण यज्ञ से सम्बधित हिंसा तथा कर्मकाण्ड का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता था, किसी भी वर्ण या जाति के उच्च-नीच का प्रश्न उसके कर्मों से निश्चित होने का प्रावधान था । तात्पर्य यह है कि श्रमण संस्कृति जैन तथा बौद्ध धर्म से प्रभावित थी तथा ब्राह्मण संस्कृति वेद-वेदांग से । जैन साहित्य में "श्रीमद आचारांग सूत्र” का महत्त्वपूर्ण स्थान है जो भाषाशास्त्रियों के मत से प्राचीनतम कृति है । उसमें बताया गया है कि “जितने तीर्थङ्कर पूर्व में हुए हैं अथवा भविष्य में होंगे, वह सब यही कहते हैं कि सभी प्राणी, सभी भूत, सभी सत्वों को दण्डादि से नहीं मारना चाहिए, उन पर आज्ञा नहीं चलाना चाहिए, उनको दास को भाँति अपने अधिकार में नहीं रखना चाहिए । उनको शारीरिक, मानसिक संताप नहीं देना चाहिए, न उन्हें प्राणों से रहित करना चाहिए । यही धर्म शुद्ध, नित्य तथा शाश्वत है ।" जैसा कि ऊपर कहा गया है श्रमण संस्कृति जैन तथा बौद्ध धर्म से अनुप्राणित रही है, जैन धर्म वास्तव में किसी विशेष प्रकार के कर्मकाण्ड तथा रूढ़ियों के पालन का नाम नहीं है । अपितु जैन धर्म मानव ही नहीं, समस्त प्राणिजगत् के उद्धार का मार्गदर्शक है । Jain Education International १२३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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