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वर्णाश्रम व्यवस्था का विवेचन
१२१ ___ मनुष्य जन्म से न ब्राह्मण होता है न अब्राह्मण । २२ वह कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होता है । २३
श्रमण संस्कृति के ऊपर दिये गये सूत्रों से ही श्वपाक जाति का हरिकेशिबल २४ आत्मोन्नति के लिए मुनि बना। चित्रसंभूत २५ नामक चांडाल युवकों ने मुनि बनकर आत्मकल्याण किया । यशोज २६ केवट कुल का था, सोपाक २७ चांडाल था, उपालि २८ नाई था और सुनोत२९ भंगो था । वैशाली की नगरवध आम्रपाली ३०भ. बुद्ध के उपदेश से थेरो बनी । स्थूलिभद्र ने अपनी पूर्व आयुष्य की प्रिया कोशा गणिका को भ. महावीर के आचार-प्रधान उन्नत पथ पर अग्रसर किया। स्वचडंदी वसूदत्ता २ कंटकार्या बनी। घर के नौकर के साथ जाने वाली पटाचारी 3 जो पगली होगई थी, वह भ. बुद्ध के उपदेश से भिक्षुणी बनी। कुबेरसेना गणिका के उदर में से पैदा हए कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता 3४ कर्म को विचित्रता देखकर मुनि और आर्यिका बने । निर्लज्ज वेश्या विमला३५ आर्य महामोगाल्लायन के उपदेश से उपासिका तथा भिक्षुणी बनी ।
श्रमण संस्कृति के दिए हए विशाल सदाचारी कर्म शिक्षा के उपदेशों से हीन, शूद्र, पातकी ऐसे अनेक जीवों का उद्धार हुआ। वैसे ही चातुर्वर्ण पर ही निर्धारित तथाकथित ब्राह्मण संस्कृति की ओर देखा जाए, तो विभिन्न जातियों में महान् विभूतियाँ हुई हैं और हो रही हैं, यह दिखाई देता है। ब्राह्मणों में द्रोणाचार्य के समान योद्धा हुए। क्षत्रिय कुलोत्पन्न जनक राजा ब्रह्मज्ञानी थे। पाराशर से उत्पन्न
२२. न जच्चा ब्राह्मणो होति न जच्चा होति अब्राह्मणो। -सुत्तनिपात
३-६-३७ २३. कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ।
वइसो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ -उत्तराध्ययनसूत्र २५-२३ २४. उत्तराध्ययन १२; २५. सुखबोधा ब्रह्मदत्त कहा १३; २६. थेरगाथा १७; २७. थेरगाथा २७; २८. थेरगाथा १८०; २६. थेरगाथा २४२ । . ३०. थेरीगाथा ६५, ३१. कुमारपाल प्रतिबोध-स्थूलिभद्रकथा । ३२. वसूदेवहिंदी (भा० १); ३३. थेरीगाथा ४७; ३४. जंबुकुमार चरिय; ३५. थेरीगाथा ३६ ।
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