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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
अश्वलायन-हे गौतम, ब्राह्मण ही सर्वश्रेष्ठ हैं, शेष सब हीन हैं, इसलिए ब्राह्मण शुद्ध हैं; क्योंकि वे ब्रह्मा के मुंह से निर्मित उसके उत्तराधिकारी पुत्र हैं।
भ० बुद्ध-अन्य स्त्रियों की तरह ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी ऋतुमती होती हैं। अन्यों की तरह वे भी संतान को जन्म देती हैं, तो ब्राह्मणों में ऐसी कौनसी विशेषता है ?
अश्वलायन-तो भी ब्राह्मण स्वर्ग के अधिकारी हैं, वैसे अन्य कोई नहीं।
भ० बुद्ध-तब प्राणहत्या, मृषावाद, चोरी, व्यभिचार, सुरापान, मांसाशन आदि दुराचारों से अन्य वर्ण की तरह क्या ब्राह्मण नरक में नहीं जाते ?
अश्वलायन-जाते तो हैं। लेकिन वे धर्मात्मा हैं, यह विशेष बात है।
भ० बुद्ध-इन पापाचरणों का त्याग सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते हैं, अन्य कोई करते नहीं, ऐसी तो बात नहीं न ?
अश्वलायन-नहीं, नहीं। त्याग सब करते हैं। पर ब्राह्मण सन्तानों में वंशपरम्परा की विशेषता प्रकट होती है।
भ० बुद्ध-घोड़ी और गधा से जैसा खच्चर पैदा होता है, वैसे ब्राह्मणी और शूद्र के सम्बन्ध से क्या अन्य किसी प्राणी को निमिति होती है ?
अश्वलायन-ऐसी बात नहीं। लेकिन ब्राह्मणों में संस्कारविधि का अन्तर है।
भ० बुद्ध-जिसके उपनयनादि संस्कार हुए हैं, ऐसा ब्राह्मण पापी, दुराचारी हो और जिस पर कोई भी संस्कार नहीं हुए, ऐसा शूद्र सदाचारी पुण्यात्मा हो, तो किसको महत्त्व देना चाहिए?
अश्वलायन-सदाचारी पुण्यात्मा को।
अश्वलायन ब्राह्मण ज्ञानी और विवेकी था। 'आचार से ही मनुष्य शुद्ध-अशुद्ध होता है,-भगवान् का यह कहना उसने मान लिया और वह उनका उपासक बना।२१
२१. मज्झिमनिकाय--अस्सलायनसुत्त-८३ ।
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