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________________ १२० श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना अश्वलायन-हे गौतम, ब्राह्मण ही सर्वश्रेष्ठ हैं, शेष सब हीन हैं, इसलिए ब्राह्मण शुद्ध हैं; क्योंकि वे ब्रह्मा के मुंह से निर्मित उसके उत्तराधिकारी पुत्र हैं। भ० बुद्ध-अन्य स्त्रियों की तरह ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी ऋतुमती होती हैं। अन्यों की तरह वे भी संतान को जन्म देती हैं, तो ब्राह्मणों में ऐसी कौनसी विशेषता है ? अश्वलायन-तो भी ब्राह्मण स्वर्ग के अधिकारी हैं, वैसे अन्य कोई नहीं। भ० बुद्ध-तब प्राणहत्या, मृषावाद, चोरी, व्यभिचार, सुरापान, मांसाशन आदि दुराचारों से अन्य वर्ण की तरह क्या ब्राह्मण नरक में नहीं जाते ? अश्वलायन-जाते तो हैं। लेकिन वे धर्मात्मा हैं, यह विशेष बात है। भ० बुद्ध-इन पापाचरणों का त्याग सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते हैं, अन्य कोई करते नहीं, ऐसी तो बात नहीं न ? अश्वलायन-नहीं, नहीं। त्याग सब करते हैं। पर ब्राह्मण सन्तानों में वंशपरम्परा की विशेषता प्रकट होती है। भ० बुद्ध-घोड़ी और गधा से जैसा खच्चर पैदा होता है, वैसे ब्राह्मणी और शूद्र के सम्बन्ध से क्या अन्य किसी प्राणी को निमिति होती है ? अश्वलायन-ऐसी बात नहीं। लेकिन ब्राह्मणों में संस्कारविधि का अन्तर है। भ० बुद्ध-जिसके उपनयनादि संस्कार हुए हैं, ऐसा ब्राह्मण पापी, दुराचारी हो और जिस पर कोई भी संस्कार नहीं हुए, ऐसा शूद्र सदाचारी पुण्यात्मा हो, तो किसको महत्त्व देना चाहिए? अश्वलायन-सदाचारी पुण्यात्मा को। अश्वलायन ब्राह्मण ज्ञानी और विवेकी था। 'आचार से ही मनुष्य शुद्ध-अशुद्ध होता है,-भगवान् का यह कहना उसने मान लिया और वह उनका उपासक बना।२१ २१. मज्झिमनिकाय--अस्सलायनसुत्त-८३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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