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________________ श्रमण संस्कृति के चार आदर्श उपासक ११५ लित करते रहते हैं । सुख-दुख के प्रसङ्ग शान्तिभङ्ग कर जाते हैं, पर ऐसे संकटमय क्षणों में, उद्विग्नता के प्रसंगों में भी मन की प्रसन्नता, शान्ति एवं धैर्य बनाए रखना - यही श्रमण संस्कृति की समता का संदेश है । गृहपति अनाथपिण्डिक, जो आठ करोड़ मुद्रा खर्च करके एक आराम का निर्माण करवाता है, उसकी समृद्धि का कोई लेखा-जोखा क्या लगाएगा ? पर उसके मन में धर्म एवं सङ्घ के लिए सर्वस्व निछावर करने की कितनी उग्र भावना है और किस प्रकार अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग करता है—यह एक आदर्श संकेत है । विशाखा मृगार माता का जीवन तो सर्वथा एक अद्भुत नारी का गौरवपूर्ण जीवन है । वह गृहलक्ष्मी जहाँ जाती है, अपार लक्ष्मी की वर्षा कर रही है । उसकी उदारता को कौन नाप सकता है । जिसने बात की बात में नौ करोड़ का महालता प्रसाधन भिक्षु सङ्घ को सेवार्थ समर्पित कर दिया। जिसने सङ्घ के लिए सत्ताईस करोड़ खर्च करके एक आराम का निर्माण करवाया और फिर भी निस्पृहता, सेवापरायणता इतनी कि वह भगवान् से वर मांगती है" यावज्जीवन रुग्ण जनों की, अन्न, औषधि आदि से सेवा करती रहूँ ।" वह स्वयं विहार में घूम-घूम कर रोगियों की परिचर्या करती है, अतिथियों की सेवा करती है और सेवा करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करती है । सेवा का यह महान् आदर्श ही श्रमण संस्कृति का प्राणतत्त्व है । इस प्रकार के आदर्श उपासकों की सैकड़ों जीवन घटनाएँ श्रमण संस्कृति के निर्माण और विकास को स्वतन्त्र कथा है, जो इस संस्कृति के प्रत्येक पृष्ठ पर अङ्कित है । --श्री श्रीचन्द सुराना 'सरस' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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