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________________ ११४ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना आदि भिक्षुओं की संभाल लेती, उनकी परिचर्या की सब योग्य व्यवस्था करती । इस सेवा से अत्यन्त प्रमोद एवं उत्साह का अनुभव करती । " आदर्श : श्रमण संस्कृति के इन चार महान् उपासक- गृहस्थों के जीवन की दिव्यता आज भी इस संस्कृति के गौरव को दीप्त कर रही है । यद्यपि ऐसे आदर्श गृहस्थों की एक लम्बी परम्परा इस संस्कृति के काल-प्रवाह के साथ चलती आ रही है, न केवल महावीर एवं तथागत के युग में ही, अपितु उत्तरवती काल में भी इस संपूर्ण विषय का कालक्रम से आलेखन एक विशाल ग्रन्थ का रूप ले सकता है, जिसकी सामग्री अपने आप में एक रोचक प्रेरणा प्रद तथा नवीनता लिए होगी । पर, प्रस्तुत में हम जिन चार उपासकों की चर्चा कर चुके हैं वे, उनके जीवन के चार विभिन्न भाव- -वाही आदर्श हमारे समक्ष उजागर हो रहे हैं । गाथापति आनन्द का जीवन एक सुखी-सम्पन्न गृहस्थ का जीवन है । उसका आदर्श है - शुद्ध आजीविका के द्वारा अर्थोपार्जन ! और अनावश्यक अर्थ का समाज एवं राष्ट्र के लिए विसर्जन ! इच्छाओं का परिसीमन, आवश्यकताओं का संयमन एवं जीवन को संयम, त्याग तथा तपस्या को धारा में बहाकर परमार्थ की ओर अग्रसर करना । गाथापति आनन्द का आदर्श कठोर त्याग एवं आत्म-संयम की प्रेरणा दे रहा है । वह धर्म को न सिर्फ शास्त्रों का शृङ्गार समझता है, अपितु उसे जीवन का शृङ्गार बनाता है और उस धर्माचरण में बड़ी दृढ़ता के साथ बढ़ता चला जाता है । अपार सम्पत्ति पर से उसने अपना स्वामित्व हटा लिया, उसे समाज के उपयोग के लिए मुक्त कर दिया । यह श्रमण संस्कृति का समाजवादी दर्शन है, आज से पक्चीससौ वर्ष पुराना । सुलसा - धर्मश्रद्धा एवं स्थितप्रज्ञता की मूर्ति है । धर्म का सार उसके जीवन के कण-कण में छलकता दिखाई दे रहा है । भौतिक समृद्धि में भी मन के आन्तरिक अभाव कभी-कभी हृदय को उद्वे १. विनयपिटक, महावग्ग ८-४-५ के आधार पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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