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श्रमण संस्कृति के चार आदर्श उपासक
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जाने पर
दासी यह कहती हुई लौट गई कि - "आपके हाथ से छू अब ये आभूषण मेरी स्वामिनी के पहनने योग्य नहीं रहे ।" विशाखा ने उस महालता प्रसाधन को आर्य के चरणों में ही समर्पित कर दिया ।
पर
महालता प्रसाधन को बेच कर उस मूल्य से 'बिहार' बनवाने के विचार से विशाखा ने उस महालता प्रसाधन को बाजार में भेजा । वहाँ नौ करोड़ उसका मूल्य एवं एक लाख बनवाई आँकी गई, इतनी बड़ी राशि देकर खरीदने वाला कोई नहीं मिला, तो विशाखा ने स्वयं ही खरीद लिया । उसके मूल्य से नौ करोड़ में भूमि खरीदी, फिर उस पर नौ करोड़ रुपया खर्च कर एक विशाल विहार का निर्माण करवाया । तथागत बुद्ध जब वहाँ चातुर्मास प्रवास के लिए आये तो विशाखा ने उस समय बहुत बड़ा उत्सव किया। इस उत्सव पर भी नौ करोड़ खर्च किए गए - इस प्रकार एक विहार-निर्माण में सत्ताईस करोड़ खर्च किए ।
एकबार भगवान् बुद्ध को प्रसन्नमुद्रा में देखकर विशाखा ने उनसे कुछ वर मांगने की अनुमति ली । बुद्ध की अनुमति मिलने पर उसने आठ वर मांगे -
१. मैं यावज्जीवन संघ को वर्षा की वर्षिक साटिका देना चाहती हूँ ।
२. मैं यावज्जीवन नवागंतुकों को भोजन देना चाहती हूँ । ३. मैं यावज्जीवन गमिकों (प्रस्थान करने वालों) को भोजन देना चाहती हूँ ।
४. मैं यावज्जीवन रोगी को भोजन देना चाहती हूँ ।
५. मैं यावज्जीवन रोगी - परिचारक को भोजन देना चाहती हूँ । ६. मैं यावज्जीवन रोगी को औषधि दान करना चाहती हूँ ७. मैं यावज्जीवन संघ को प्रातःकाल यवागू देना चाहती ८. मैं यावज्जीवन भिक्षुणीसंघ को उदग- साटिका देना
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चाहती हूँ ।
विशाखा की उदार सेवापरायण भावना को जान कर तथागत अत्यन्त प्रसन्न हुए ।
विशाखा प्रतिदिन विहार में घूमती और आगंतुकों, गमिकों, रोगो
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