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________________ श्रमण संस्कृति के चार आदर्श उपासक ११३ जाने पर दासी यह कहती हुई लौट गई कि - "आपके हाथ से छू अब ये आभूषण मेरी स्वामिनी के पहनने योग्य नहीं रहे ।" विशाखा ने उस महालता प्रसाधन को आर्य के चरणों में ही समर्पित कर दिया । पर महालता प्रसाधन को बेच कर उस मूल्य से 'बिहार' बनवाने के विचार से विशाखा ने उस महालता प्रसाधन को बाजार में भेजा । वहाँ नौ करोड़ उसका मूल्य एवं एक लाख बनवाई आँकी गई, इतनी बड़ी राशि देकर खरीदने वाला कोई नहीं मिला, तो विशाखा ने स्वयं ही खरीद लिया । उसके मूल्य से नौ करोड़ में भूमि खरीदी, फिर उस पर नौ करोड़ रुपया खर्च कर एक विशाल विहार का निर्माण करवाया । तथागत बुद्ध जब वहाँ चातुर्मास प्रवास के लिए आये तो विशाखा ने उस समय बहुत बड़ा उत्सव किया। इस उत्सव पर भी नौ करोड़ खर्च किए गए - इस प्रकार एक विहार-निर्माण में सत्ताईस करोड़ खर्च किए । एकबार भगवान् बुद्ध को प्रसन्नमुद्रा में देखकर विशाखा ने उनसे कुछ वर मांगने की अनुमति ली । बुद्ध की अनुमति मिलने पर उसने आठ वर मांगे - १. मैं यावज्जीवन संघ को वर्षा की वर्षिक साटिका देना चाहती हूँ । २. मैं यावज्जीवन नवागंतुकों को भोजन देना चाहती हूँ । ३. मैं यावज्जीवन गमिकों (प्रस्थान करने वालों) को भोजन देना चाहती हूँ । ४. मैं यावज्जीवन रोगी को भोजन देना चाहती हूँ । ५. मैं यावज्जीवन रोगी - परिचारक को भोजन देना चाहती हूँ । ६. मैं यावज्जीवन रोगी को औषधि दान करना चाहती हूँ ७. मैं यावज्जीवन संघ को प्रातःकाल यवागू देना चाहती ८. मैं यावज्जीवन भिक्षुणीसंघ को उदग- साटिका देना 1 चाहती हूँ । विशाखा की उदार सेवापरायण भावना को जान कर तथागत अत्यन्त प्रसन्न हुए । विशाखा प्रतिदिन विहार में घूमती और आगंतुकों, गमिकों, रोगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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