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________________ ११२ श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना प्रकार बाहर के झगड़े-कलह आदि की चर्चा घर में नहीं करनी चाहिए। ... 'देने वालों को देना चाहिए, नहीं देने वालों को नहीं देना चाहिए'इसका भाव मंगनी को लक्षित करके है । अर्थात् जिस कुल की कन्या ली जाती है, उन्हीं कूलों को कन्या आदि देना चाहिए । 'न देने वालों को भी देना चाहिए'-इसका भाव है जाति-मित्रों में चाहे कोई गरीब हो या अमीर, प्रतिदान देने में समर्थ हो या न हो, पर सबको ही उदार भाव से देना चाहिए । 'सुख से बैठना चाहिए' का तात्पर्य है सास-श्वसुर आदि के बैठने के स्थान पर नहीं बैठना चाहिए ताकि पुनः उठना पड़े। अपने योग्य स्थान पर बैठना चाहिए। 'सुख से खाना चाहिए' का अभिप्राय है -सास, श्वसुर, पति, बालक आदि के भोजन कर चुकने के पश्चात् भोजन करना । 'सुख से लेटना चाहिए' का अर्थ है-सास, श्वसुर एवं पति के शयन करने के पश्चात् शयन करना । 'अग्नि की तरह परिचरण करना चाहिए'-इससे तात्पर्य है सास-श्वसुर, पति एवं वृद्धजनों आदि को अग्नि की भाँति पूज्य समझना चाहिए और 'घर के देवताओं को नमस्कार करना चाहिए'--का तात्पर्य है-घर पर आये अतिथि, प्रजितों आदि को उत्तम भोज्य पदार्थ समर्पित करना चाहिए।" मृगार श्रेष्ठी विशाखा के ये उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। एकबार विशाखा अलंकारों से विभूषित होकर विहार में तथागत के दर्शन करने गई । वहाँ उसने अपने आभूषणों के साथ 'महालता प्रसाधन' भी उतार कर दासी को दिया, कि- 'शास्ता के पास से लौटते समय मैं इन्हें पहनूंगी।" धर्मोपदेश सुनकर लौटते समय दासी उन आभूषणों को विहार में ही भूल गई। परिषद् के चले जाने पर स्थविर आनन्द ने महालता प्रसाधन को वहाँ पड़ा देखा, तो उन्होंने बुद्ध को सूचना दी। उनके संकेत पर उन्हें एक ओर रख दिया गया। उधर जब विशाखा ने आभूषण मांगे तो दासी को अपनी भूल याद आई। विशाखा ने दासी को घबराई देखकर आश्वस्त किया और कहा-"जा, उन्हें ले आ, पर ध्यान रखना, यदि स्थविर आनन्द ने उन्हें उठाकर कहीं एक ओर रख दिये हों तो मत लाना।" । दासो आराम में आई । आनन्द ने दासी के आने का अभिप्राय समझ लिया और एक ओर पड़े प्रसाधन की ओर संकेत किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003192
Book TitleShraman Sanskruti Siddhant aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalakumar
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1971
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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