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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
जीवन के अंतिम समय में अनाथपिण्डिक रुग्ण हुआ । उसकी प्रार्थना पर सारिपुत्र आनन्द के साथ उसके घर पर आये । उसे इंद्रिय संयम एवं अनासक्ति का उपदेश दिया, जिसे सुनकर अनाथ fofuse को बहुत शान्ति मिली । वह कालधर्म प्राप्त कर तुषित काय देवलोक में देव बना । "
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विशाखा मृगार माता :
विशाखा साकेत के महाधनाढ्य कुलपति धनंजय की पुत्री थी । वह रूप, लावण्य एवं चातुर्य की अद्भुतमूर्ति थी । श्रावस्ती के मृगार श्रेष्ठी के पुत्र पूर्णवर्धन के साथ उसका विवाह हुआ । विशाखा के विवाह प्रसंग की कथा भी बड़ी रोचक है ।
मृगार श्रेष्ठी ने अपने पुत्र के लिए योग्य कन्या की खोज करने के लिए अनेक कुशल पुरुषों को दूर-दूर भेजा । कुछ पुरुष साकेत की गलियों में घूम रहे थे । उस समय विशाखा पाँचसौ कुमारियों के साथ एक उत्सव में सम्मिलित होने निकली थी । सहसा वर्षा प्रारम्भ होगई । विशाखा की सहेलियाँ भींगने के भय से दौड़कर पास की एक शाला में घुस गई। परन्तु विशाखा उसी प्रकार मन्दगति से चलती हुई शाला में आई । मृगार श्रेष्ठी के पुरुषों ने विशाखा में कुछ विलक्षण सौन्दर्य देखा । वे विशाखा की ओर आकृष्ट हुए । उसके चातुर्य एवं मधुर भाषण की परीक्षा लेने निकट आये और बोले"अम्म ! क्या तुम वृद्धा हो ?”
विशाखा ने विनम्रता के साथ कहा - " तात ! ऐसा आपने क्या देखा ?"
पुरुषों ने कहा - "तुम्हारे साथ की अन्य कुमारिकाएँ भींगने के भय से दौड़कर शाला में चली गईं, किन्तु तुम वृद्धा की तरह धीरेधीरे चल रही हो ! तुमने साड़ी के भीगने की तनिक भी चिन्ता नहीं की !"
मधुर भाषिणी विशाखा ने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया"तात ! मेरे लिए साड़ियों की कमी नहीं है । फिर तरुण कुमारिका
१. मज्झिमनिकाय, अनाथपिण्डिकोपवाद सुत्त ३ |५|१ |
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