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श्रमण संस्कृति के चार आदर्श उपासक वहाँ उसने तथागत बुद्ध के दर्शन किए। दर्शन कर शास्ता से धम सुना । धर्म सुनकर उसे ज्ञान मिला, जैसे अंधेरे में दीपक जला दिया गया हो, मार्ग-भूले को मार्ग दिखा दिया गया हो, उसी प्रकार अनाथपिण्डिक को शास्ता से धर्म सुनकर ज्ञाननेत्र प्राप्त हुए. प्रकाश प्राप्त हुआ। अनाथ पिण्डिक ने भगवान बुद्ध से भिक्षसंघ के साथ श्रावस्ती में वर्षावास स्वीकार करने की प्रार्थना की।
बुद्ध ने अनाथपिण्डिक को प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा"गृहपति ! तथागत शून्य आगार में अभिरमण करते हैं।"
अनाथपिण्डिक तथागत के संकोच को समझ गया। उसने राजगृह और श्रावस्ती के बीच प्रत्येक योजन पर आरामगृह बनवाये। जहाँ पर धनिक लोग थे, उन्होंने अपने व्यय से, तथा बाकी स्थानों पर अनाथपिण्डिक ने स्वयं धन-व्यय करके आराम बनवाये ।।
श्रावस्ती पहुँचकर गृहपति ने आराम के उपयुक्त स्थान की खोज प्रारम्भ की। उसने सोचा-"ऐसा स्थान होना चाहिए जो नगर के न अधिक निकट और न अधिक दूर हो, जन-कोलाहल से मुक्त एवं ध्यान के योग्य विजन भूमि हो।" खोजते हए वह जेत राजकुमार के उद्यान में पहुंचा। वह स्थान उसे बहुत उपयुक्त जंचा। उसने राजकुमार से उद्यान खरीदने का प्रस्ताव भेजा। राजकुमार ने कहा - "गृहपति ! वह उद्यान तो कोटि-संथार (कोटि स्वर्ण-मुद्रा) से भी अदेय है।"२ ____इस बात पर अनाथपिण्डिक ने गाड़ियाँ भरकर मोहरें मँगवाई
और जेतवन की भूमि पर सटाकर सर्वत्र मोहरें बिछादी । इस प्रकार जेतवन की भूमि को मोहरों से नापकर उसने खरीदा और उस पर आठ करोड़ मुद्राएँ खर्च करके विशाल आराम का निर्माण करवाया।
भगवान् बुद्ध जब श्रावस्ती में आये तो अनाथपिण्डिक के जेतवन में ठहरे । गृहपति ने भगवान् की भोजन, वस्त्र आदि से बहुत शुश्रूषा की और जेतवन आराम को चातुर्दिश सङ्घ की सेवार्थ समर्पित कर दिया।
२. विनयपिटक, अट्ठकथा ।
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