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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना सुलसा ने देवता से कुछ भी नहीं मांगा। किन्तु देव ने सहज अनुग्रह किया, सुलसा के भाग्य-कल्प वृक्ष का फलने का समय आया। उसे एक ही नहीं, बत्तीस सुकुमार शुभ लक्षणों वाले पुत्र प्राप्त हुए। उसका सूना आंगन चहक उठा। ___ सुलसा के पुत्र युवा होने पर महाराज श्रेणिक के अङ्गरक्षक बने । जब श्रेणिक वैशाली गणाध्यक्ष चेटक को पुत्री का भूमि मार्ग से अपहरण कर राजगह की ओर दौड़ा तो चेटक ने उसका पीछा किया। श्रेणिक सुरक्षित दौड़ गया और उन बत्तीसों अङ्गरक्षकों ने
चेटक को रोककर युद्ध किया। उस युद्ध में श्रेणिक का एक अङ्गरक्षक मारा गया और एक की मृत्यु के साथ ही शेष इकतीस भाई भी खड़ेखड़े गिर पड़े। __एक दिन सुलसा की सूनी गोद हरी-भरी हुई थी, आज फिर वह गोद सूनी हो गई। दुःख के बाद सुख और सुख के बाद दुःख-यही नियति का क्रम है। पुत्रों की सहसा मृत्यु ने सुलसा के दिल पर गहरी चोट लगाई, किन्तु इस चोट को भी वह चुपचाप सह गई, अपने तत्त्वज्ञान के सुदृढ़ सहारे से । उसका मातृत्व एक बार कराह उठा था, पर अन्तविवेक ने उस चीख-पुकार को भीतर ही भीतर शांत कर दिया।
सुलसा की धार्मिक दृढ़ता तो और भी गजब की थी। स्वयं भगवान् महावीर ने धर्म-सभाओं में उसकी प्रशंसा को। अम्बड़ नामक परिब्राजक, जो स्वयं भी महावीर का अनुयायी श्रावक था, सुलसा की धर्म-परीक्षा लेने आया। अनेक प्रकार के मायावी रूप बनाकर उसने सुलसा की दृढ़ धार्मिकता की परीक्षा ली, पर सुलसा अपने धर्म-विवेक से एक कदम भी पीछे नहीं हटी । अम्बड़ ने सुलसा के व्रत-विवेक एवं धर्म-निष्ठा की भूरि-भूरि प्रशंसा की।'.. गृहपति अनाथपिण्डिक :
अनाथ पिण्डिक श्रावस्ती का एक अत्यन्त धनाढ्य और प्रभावशाली श्रेष्ठी था। एकबार वह किसी कार्यवश राजगृह गया ।
१. विस्तार के लिए देखिए आवश्यक चूणि उत्तरार्ध पत्र सं० १०४,
तथा उपदेश प्रासाद, स्तम्भ ३, व्याख्यान ३६ ।
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