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श्रमण संस्कृति के चार आदर्श उपासक
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गाथापति आनन्द : ___ गाथापति ( गृहपति ) आनन्द वाणिज्य ग्राम का निवासी था। उसकी धर्मपत्नी शिवानन्दा एक सूखी पत्नी और कुशल गृहिणी थी। आनन्द के पास बारह करोड़ हिरण्य की सम्पत्ति थी, जिसमें से चार करोड़ सुरक्षित निधि के रूप में, चार करोड़ ब्याज में एवं चार करोड़ उसके व्यापार में लगी हई थी। आनन्द के पास बहुत बड़ी कृषि भूमि थी तथा गौओं के चार विशाल गोकुल थे, जिनमें चालीस हजार गौएँ थीं। राजा युवराज आदि से लेकर नगर के श्रेष्ठी, सार्थवाह एवं नगर-रक्षक तक सभी आनन्द का सम्मान करते समय समय पर उससे परामर्श लेते और उसकी मन्त्रणाओं से लाभ उठाते ।
एकबार वाणिज्य ग्राम के कोल्लाक (वर्तमान कोल्हुआ) सन्निवेश (उपनगर) में भगवान् महावीर पधारे। गाथापति आनन्द सज्जित होकर भगवान् का उपदेश सुनने को गया। भगवान् ने गृहस्थ धर्म का विस्तार के साथ वर्णन किया, जिसे सुनकर आनन्द विशेष रूप से श्रद्धाशोल हआ और उसे स्वीकार करने को उत्कंठित हो भगवान् के समीप आया। प्रभु को विनय पूर्वक वन्दना कर आनन्द ने भगवान् द्वारा कथित गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया।
भगवान महावीर के निकट धर्म का स्वरूप समझकर उसे स्वीकार कर आनन्द अपने घर आया और अपनी पत्नी शिवानन्दा देवी को उस धर्म के सम्बन्ध में बताया। तत्त्व समझाकर आनन्द ने कहा-"देवानुप्रिये ! इस प्रकार का श्रेष्ठ धर्म हमारे जीवन का हित एवं मङ्गल करने वाला है, यदि तुम्हें यह रुचिकर प्रतीत होता हो, तो मैं चाहता हूँ कि तुम भी इस गृहस्थ धर्म को स्वीकार करो, ताकि अपनी जीवन-यात्रा सच्ची सहमिता के साथ सम्पन्न हो।"
पति का संकेत ही शिवानन्दा के लिए निर्देश था। वह भी भगवान् महावीर की धर्मसभा में पहुँची और गृहस्थ धर्म का विवेचन सुनकर उसे स्वीकार किया।
गहस्थ धर्म की साधना में आनन्द निरन्तर आगे बढ़ता रहा। जीवन के अन्तिम समय में उसने परिवार का सम्पूर्ण दायित्व अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपा और स्वयं अपनी पौषधशाला में जाकर ध्यान, आत्मचिन्तन, तपःसाधना आदि के द्वारा धर्म-जागरण करता हुआ
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