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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
कृश हो गया। चर्मवेष्टित हड्डियाँ ही शरीर में रह गई। जब वे चलते, उनकी हड्डियाँ शब्द करतीं, जैसे कोई सूखे पत्तों से भरी गाड़ी चल रही हो, कोयलों से भरी गाड़ी चल रही हो। वे अपने तप के तेज से दीप्त थे । ८७
स्कन्दक तपस्वी को बोलने में ही नहीं; बोलने का मन करने मात्र से ही क्लान्ति होने लगी। अपने शरीर की इस क्षीणावस्था का विचार कर वे महावोर के पास आये। उनसे आमरण अनशन की आज्ञा मांगी। अनुज्ञा पा, परिचारक भिक्षुओं के साथ विपलाचल पर्वत पर आये। यथाविधि अनशन ग्रहण किया। एक मास के अनशन से काल-धर्म को पा अच्युतकल्प स्वर्ग में देव हुए। महावीर के पारिपाश्विकों में इनका भी उल्लेखनीय स्थान रहा है। पंचमांग भगवतो सूत्र में इनके जीवन और इनकी साधना पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। ___ महावीर की भिक्षुणियों में चन्दनबाला के अतिरिक्त मृगावती, देवानन्दा, जयन्ती, सुदर्शना आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं।
महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्ष -भिक्ष णियों की यह संक्षिप्त परिचय-गाथा है। विस्तार के लिए इस दिशा में बहुत अवकाश है। जो लिखा गया है, वह तो प्रस्तुत विषय की झलक मात्र के लिए ही यथेष्ट माना जा सकता है।
. -मुनि श्री नगराजजी, डी० लिट्
८७. तएण से खंदए अणगारे तेणं उरालेणं, विउलेणं,""महाणभागेण
तवोकम्मेणं सुक्के, लुक्खे, निम्मसे, अट्ठि चम्मावणद्ध, किडिकिडिया भूए, किसे, धमणि संतए जाए यावि होत्था । जीवं-जीवेण गच्छइ, जीवं जीवेण चिट्ठइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलायति । से जहानामए कट्टसगडिया इ वा, पत्त-तिल-भंडगसगडिया इ वा, एरंडकट्टसगडिया इ वा, इंगालसगडिया इ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससद्द गच्छइ, ससद्द चिट्ठइ, एवामेव खंदए वि अणगारे ससद्द गच्छइ, ससहचिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोगिएणं, हुयासणे विव भासारासिपडिच्छण्णे तवेणं, तेएणं, तव-तेयसिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणे चिटठाइ।
-भगवती सूत्र, श० २, उ० १
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