________________
भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ
१०१
वह रोमांचित हो गई। उसके स्तनों से दूध की धारा बह चलो । उसने मुनि को दही लेने का आग्रह किया । मुनि दही लेकर महावीर के पास आये । 'पारण' किया। महावीर से पूछा-"भगवन् आपने कहा था, माता के हाथ से पारण करो। वह क्यों नहीं हुआ ?" महावीर ने कहा-"शालिभद्र ! माता के हाथ से ही 'पारण' हुआ है। वह अहीरिन तुम्हारे पिछले जन्म की माता थी।" __ महावीर की अनुज्ञा पाकर शालिभद्र ने उसी दिन वैभारगिरि पर जा आमरण अनशन कर दिया । भद्रा समवसरण में आई । महावीर के मुख से शालिभद्र का भिक्षाचरी से लेकर अनशन तक का सारा वृतान्त सुना। माता के हृदय पर जो बीत सकता है, वह बीता। तत्काल वह पर्वत पर आई। पुत्र को उस तपःक्लिष्ट काया को और मरणाभिमुख स्थिति को देखकर उसका हृदय हिल उठा। वह दहाड़ मार कर रोने लगी। राजा बिम्बिसार ने उसे सान्त्वना दी। उद्बोधन दिया । वह घर गई । शालिभद्र सर्वोच्च देवगति को प्राप्त हुए । उनके गृही-जीवन की विलास-प्रियता और भिक्षु-जीनव की कठोर साधना दोनों ही उत्कृष्ट थीं। स्कन्दक:
स्कन्दक महावीर के परिव्राजक भिक्ष थे। परिव्राजक-साधना से भिक्ष-साधना में आना और उसमें उत्कृष्ट रूप से रम जाना, उनकी उल्लेखनीय विशेषता थो। आगम बताते हैं-स्कन्दक यत्नपूर्वक ठहरते, यत्नपूर्वक बैठते, यत्नपूर्वक सोते, यत्नपूर्वक खाते
और यत्नपूर्वक बोलते। प्राण, भूत, जीव, सत्व के प्रति संयम रखते । वे कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक ईर्या आदि पाँचों समितियों से सयत, वचः संयत, काय संयत, जितेन्द्रिय, आकांक्षा-रहित, चपलतारहित और संयमरत थे।८६
वे स्कन्दक भिक्षु स्थविरों के पास अध्ययन कर एकादश अंगों के ज्ञाता बने। उन्होंने भिक्ष को द्वादश प्रतिमा आराधी । भगवान् महावीर से आज्ञा लेकर गुणरत्नसंवत्सर-तप तपा। इस उत्कट तप से उनका सुन्दर, सुडौल और मनोहारो शरीर रुक्ष, शुष्क और
८६. भगवती सूत्र, श० २, उ० १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org