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भ. महावीर और बुद्ध के पारिपाश्विक भिक्षु-भिक्षुणियाँ
आनन्द:
कुछ दृष्टियों से बुद्ध के सारिपुत्र और मौद्गल्यायन से भो अधिक अभिन्न शिष्य आनन्द थे। बुद्ध के साथ इनके संस्मरण बहुत ही रोचक और प्रेरक हैं। इनके हाथों कुछ ऐसे ऐतिहासिक कार्य भी हए हैं, जो बौद्ध-परम्परा में सदा के लिए अमर रहेंगे। बौद्धपरम्परा में भिक्षुणी-संघ का श्रीगणेश नितान्त आनन्द की प्रेरणा से हआ। बुद्ध नारी-दीक्षा के पक्ष में नहीं थे। उन्हें उसमें अनेक दोष दीखते थे। केवल आनन्द के आग्रह पर महाप्रजापति गौतमी को उन्होंने दीक्षा दी। दीक्षा देने के साथ-साथ यह भी उन्होंने कहा"आनन्द ! यह भिक्ष-संघ यदि सहस्र वर्ष तक टिकने वाला था तो अब पाँचसौ वर्ष से अधिक नहीं टिकेगा। अर्थात् नारी-दीक्षा से मेरे धर्म-संघ की आधी ही उम्र शेष रह गई है।” १५
प्रथम बौद्ध-संगीति में त्रिपिटकों का संकलन हुआ। पांचसौ अर्हत-भिक्षओं में एक आनन्द ही ऐसे भिक्ष थे जो सूत्र के अधिकारी ज्ञाता थे, अतः उन्हें ही प्रमाण मानकर सुत्तपिटक का संकलन हुआ। कुछ बातों की स्पष्टता यथासमय बुद्ध के पास न कर लेने के कारण उन्हें भिक्ष-संघ के समक्ष प्रायश्चित्त भी करना पड़ा। आश्चर्य तो यह है कि भिक्षुसंघ ने उन्हें स्त्री-दीक्षा का प्रेरक बनने का भी प्रायश्चित्त कराया ।१६
आनन्द बुद्ध के उपस्थाक (परिचारक) थे। उपस्थाक बनने का घटनाप्रसंग भी बहत सरस है। बुद्ध ने अपनी आयु के ५६ वें वर्ष में एकदिन सभी भिक्षुओं को आमंत्रित कर कहा-"भिक्षुओ ! मेरे लिए एक उपस्थाक नियुक्त करो। उपस्थाक के अभाव में मेरी अवहेलना होती है। मैं कहता हूँ, इस रास्ते चलना है, भिक्ष उस रास्ते जाते हैं। मेरा चीवर और पात्र भूमि पर यों ही रख देते हैं।"
१५ विस्तार के लिए देखें 'आगम और त्रिपिटकः एक अनुशीलन,
खण्ड १, के अन्तर्गत “आचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता" प्रकरण । १६. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, प्रथम खण्ड के अन्तर्गत
देखें, "प्राचार-ग्रन्थ और आचार-संहिता" प्रकरण ।
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