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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना १०. अनेक भिक्षु संभिन्न श्रोतृ-लब्धि के धारक थे, जो किसी
भी एक इन्द्रिय से पाँचों इन्द्रियों के विषय ग्रहण कर सकते थे। उदाहरणार्थ-कान से सुन भी सकते थे, देख भी सकते
थे, चख भी सकते थे आदि। ११. अनेक भिक्ष अक्षीणमहानसलब्धि के धारक थे, जो प्राप्त
अन्न को जब तक स्वयं न खा लेते थे, तब तक शतश:--
सहस्रशः व्यक्तियों को खिला सकते थे। १२. अनेक भिक्षु विकुवर्ण ऋद्धि के धारक थे। वे अपने नानारूप
बना सकते थे। १३. अनेक भिक्षु जंघाचारणलब्धि के धारक थे। वे जंघा पर
हाथ लगाकर एक ही उड़ान में तेरहवें रुचकवर द्वीप तक
और मेरु पर्वत तक जा सकते थे। १४. अनेक भिक्षु विद्याचरण लब्धि के धारक थे। वे ईषत्
उपष्टम्भ से दो उड़ान में आठवें नन्दीश्वर द्वीप तक और
मेरु पर्वत पर जा सकते थे। १५. अनेक भिक्षु आकाशातिपातीलब्धि के धारक थे। वे
आकाश में गमन कर सकते थे। आकाश से रजत आदि ___ इष्ट-अनिष्ट पदार्थों की वर्षा कर सकते थे।"१3
मौद्गल्यायन का निधन बहुत ही दयनीय प्रकार का बताया गया है। उनके ऋद्धि-बल से जल-भन कर इतर तैथिकों ने उनको पशुमार से मारा। उनकी अस्थियाँ इतनी चूर-चूर कर दी गई कि कोई खण्ड एक तण्डुल से बड़ा नहीं रहा। यह भी बताया गया है कि प्रतिकारक ऋद्धिबल के होते हुए भी उन्होंने इसे पूर्वकर्मों का परिणाम समझ कर स्वीकार किया।१४
१३. अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था, वएणं सावाणुग्गहस मत्था,
कारणं सावाणुग्गहसमत्था, अप्पेग इया खेलोसहिपत्ता, एवं जल्लोसहिपत्ता, विप्पोसहिपत्ता, आमोसहिपत्ता, सम्वोसहिपत्ता,......"पयाणुसारी,संभिन्नसोआ अक्खीणमहाणसिआ, विउव्वणिढिपत्ता,चारणा, विज्जाहरा, आगासाइवाइणो ।
---उववाइय सुत्त, १५ । १४. धम्मपद. अट्ठकथा, १०७; मिनिन्दप्रश्न, परि० ४, पृ० २२६ ।
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