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श्रमण संस्कृति : सिद्धान्त और साधना
सारिपुत्र, मौद्गल्यायन आदि सभी को टालकर बुद्ध ने आनन्द को उपस्थाक-पद पर नियुक्त किया । १७
तब से आनन्द बुद्ध के अनन्य सहचारी रहे। समय-समय पर गौतम की तरह उनसे प्रश्न पूछते रहते और समय-समय पर उनसे परामर्श भी लेते रहते। जिस प्रकार महावीर से गौतम का सम्बन्ध पूर्वभवों में भी रहा, उसी प्रकार जातक-साहित्य में आनन्द के भी बुद्ध के साथ उत्पन्न होने की अनेक कथाएँ मिलती हैं । आगन्तुकों के लिए बुद्ध से भेंट का माध्यम भी मुख्यतः वे ही बनते । बुद्ध के निर्वाण-प्रसंग पर गौतम की तरह आनन्द भी व्याकुल हए । गौतम महावीर-निर्वाण के पश्चात् व्याकुल हुए। आनन्द निर्वाण से पूर्व ही एक ओर जाकर दीवाल को खूटी पकड़कर रोने लगे; जबकि उन्हें बुद्ध के द्वारा उसी दिन निर्वाण होने की सूचना मिल चुकी थी। महावीर-निर्वाण के पश्चात् गौतम उसी रात को केवली हो गये। बद्ध-निर्वाण के पश्चात प्रथम बौद्ध-संगीति में जाने से पूर्व आनन्द भी अहंत हो गये। गौतम की तरह इनको भी अर्हत् न होने की आत्म-ग्लानि हुई। दोनों ही घटना-प्रसंग बहुत सामीप्य रखते हैं ।
महावीर के भी एक अनन्य उपासक आनन्द १८ थे, पर ये गृहीउपासक थे और बौद्ध-परम्परा के आनन्द बुद्ध के भिक्षु-उपासक थे। नाम साम्य के अतिरिक्त दोनों में कोई तादात्म्य नहीं है। महावीर के भिक्षु शिष्यों में भी एक आनन्द थे, जिन्हें बुलाकर गोशालक ने कहा था-"मेरी तेजोलब्धि के अभिघात से महावीर शीघ्र ही कालधर्म को प्राप्त होंगे।" जिनका उल्लेख गोशालक-संलाप में आता है। उपालि :
उपालि प्रथम संगोति में विनय-सूत्र के संगायक थे। विनय-सूत्र उन्होंने बुद्ध की पारिपाश्विकता से ग्रहण किया था। ये नापित-कुल
१७. अंगुत्तरनिकाय, अट्ठकथा, १।४।१ । १८. उपासकदशांग सूत्र, अ० १ ।
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