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धर्म और दर्शन
विहायोगति नाम, (ख) प्रशस्त विहायोगति नाम । यहाँ गति का अर्थ चलना है ।
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(२१) त्रस नाम - जिस कर्म के उदय से गमन करने की शक्ति प्राप्त हो ।
(२२) स्थावर नाम - जिस कर्म के उदय से इच्छापूर्वक गति न होकर स्थिरता प्राप्त होती है ।
(२३) सूक्ष्म नाम - जिस कर्म के उदय से जीव को चर्म चक्षुत्रों से अगोचर सूक्ष्म शरीर प्राप्त हो ।
(२४) बादर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव को चर्मचक्षुगोचर स्थूल शरीर की उपलब्धि हो ।
(२५) पर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करे ।
( २६ ) अपर्याप्त नाम - जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण न कर सके ।
(२७) साधारण शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों को एक ही साधारण शरीर प्राप्त हो ।
(२८) प्रत्येक शरीर नाम - जिस कर्म के उदय से जीवों को भिन्न-भिन्न शरीर की प्राप्ति हो ।
(२६) स्थिर नाम -- जिस कर्म के उदय से हड्डी, दाँत प्रादि स्थिर अवयव प्राप्त हों ।
(३०) अस्थिर नाम - जिस कर्म के उदय से जिह्वा श्रादि अस्थिर अवयव प्राप्त हों ।
(३१) शुभ नाम - जिस कार्म के उदय होने से नाभि के ऊपर के अवयव प्रशस्त हों ।
(३२) अशुभ नाम - जिस कर्म के उदय से नाभि के नीचे के अवयव अशुभ होते हैं ।
( ३३ ) सुभग नाम - जिस कर्म के उदय से किसी भी प्रकार का उपकार न करने पर भी और सम्बन्ध न होने पर भी जीव सब के मन को प्रिय लगे ।
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