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________________ कर्मवाद : पर्यवेक्षण (३४) दुर्भग नाम - जिस कर्म के उदय से उपकार करने पर और सम्बन्ध होने पर भी अप्रिय लगे । (३५) सुस्वर नाम - जिसके उदय से जीव का स्वर श्रोता के हृदय में प्रीति उत्पन्न करे । ८५ (३६) दु:स्वर नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का स्वर प्रीतिकारी हो । (३७) आदेय नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का वचन बहुमान्य हो । (३८) अनादेय नाम - जिस कर्म के उदय से युक्तिपूर्ण वचन भी अमान्य हो । (३६) यशः कीर्तिनाम --- जिस कर्म के उदय से संसार में यश और कीर्ति प्राप्त हो । (४०) प्रयशः कीर्तिनाम - जिस कर्म के उदय से अपयश और अपकीर्ति प्राप्त हो । ( ४१ ) निर्माण नाम - जिस कर्म के उदय से शरीर के अंग-प्रत्यंग व्यवस्थित हों । (४२) तीर्थंकर नाम - जिस कर्म के उदय से धर्मतीर्थ की स्थापना करने की शक्ति प्राप्त हो । प्रज्ञापना १६१ व गोम्मटसार १६२ में नाम कर्म के तिरानवे भेदों का कथन किया गया है और कर्मविपाक में एक सौ तीन १६३ भेदों का वर्णन है । अन्यत्र इकहत्तर प्रकृतियों का उल्लेख है, जिनमें शुभ नाम कर्म की सैंतीस प्रकृतियाँ मानी हैं १६४ और अशुभनाम १६१. प्रज्ञापना २३।२।२६३ १६२. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) २२ १६३. कर्मविपाक पं० सुखलाल जी हिन्दी अनुवाद पृ० ५८।१०५ १६४. सत्तत्तीसं नामस्स, पयईओ पुन्नमाह ( हु ) ता य इमो । Jain Education International - नवतत्त्वसाहित्य संग्रह : नवतत्त्वप्रकरणम् ७ भाष्य ३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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