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________________ कर्मवाद : पर्यवेक्षण ८३ प्रभाव पड़ता है। इसके आठ उपभेद हैं-(क) कर्कश स्पर्श नाम, (ख) मृदु स्पर्श नाम, (ग) गुरु स्पर्श नाम, (घ) लघु स्पर्श नाम, (अ) स्निग्ध स्पर्श नाम, (च) रुक्ष स्पर्श नाम, (छ) शीत स्पर्श नाम, (ज) उष्ण स्पर्श नाम। (१३) अगुरुलघुनाम-जिसके उदय से शरीर अत्यन्त गुरु या अत्यन्त लघु परिणाम को न पाकर अगुरुलघु रूप में परिणत होता है । (१४) उपघात नाम-इस कर्म के उदय से जीव विकृत बने हुए अपने ही अवयवों से क्लेश पाता है । जैसे प्रतिजिह्वा, चोरदन्त, रसौली आदि। (१५) पराघात नाम-इस कर्म के उदय से जीव अपने दर्शन और वाणी से ही प्रतिपक्षी और प्रतिवादी को पराजित कर देता है। (१६) प्रानुपूर्वी नाम-जन्मान्तर के लिए जाते हुए जीव को आकाश प्रदेश की श्रेणी के अनुसार नियत स्थान तक गमन कराने वाला कर्म। इसके भी चार उपभेद हैं-(क) नरक-प्रानुपूर्वीनाम, (ख) तियंच-पानुपूर्वी नाम, (ग) मनुष्य-प्रानुपूर्वी नान, (घ) देवमानुपूर्वी नाम । (१७) उच्छ वास नाम-इसके उदय से जीव श्वासोच्छवास ग्रहण करता है। (१८) आतप नाम-इस कर्म के उदय से अनुष्ण शरीर में से उष्ण प्रकाश निकलता है ।१५९ (१९) उद्योत नाम-इसके उदय से शरीर शीतप्रकाशमय होता हैं । १६० (२०) विहायोगति नाम-इसके उदय से प्रशस्त और अप्रशस्त गति होती है। इसके भी दो उपभेद हैं-(क) प्रशस्त १५९. प्रस्तुत कर्म का उदय सूर्य-मण्डल के एकेन्द्रिय जीवों में होता है । उनका शरीर शीत होता है पर प्रकाश उष्ण होता है । १६०. देव के उत्तर वैक्रिय शरीर में से, व लब्धिधारी मुनि के वैक्रिय शरीर से तथा चांद, नक्षत्र, तारागणों से निकलने वाला शीतप्रकाश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003191
Book TitleDharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1967
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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